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________________ ३७६ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् अनु०-तत:, आगत इति चानुवर्तते । अन्वय:-ततो हेतुमनुष्येभ्य आगतोऽन्यतरस्यां रूप्य: । अर्थ:-तत इति पञ्चमीसमर्थेभ्यो हेतुवाचिभ्यो मनुष्यविशेषवाचिभ्यश्च प्रातिपदिकेभ्य आगत इत्यस्मिन्नर्थे विकल्पेन रूप्य: प्रत्ययो भवति, पक्षे च यथाविहितं प्रत्ययो भवति। उदा०-हितुः) समादागतं समरूप्यम् (रूप्य:)। समीयं धनम् (छ:)। विषमादागतं विषमरूप्यम् (रूप्य:)। विषमीयं धनम् (छ:)। (मनुष्य:) देवदत्तादागतं देवदत्तरूप्यम् (रूप्य:)। देवदत्तं धनम् (अण्) यज्ञदत्तादागतं यज्ञदत्तरूप्यम् (रूप्य:)। याज्ञदत्तं धनम् (अण्) । आर्यभाषा: अर्थ-(ततः) पञ्चमी-समर्थ हितुमनुष्येभ्य:) हेतुवाची और मनुष्यविशेषवाची प्रातिपदिकों से (आगतः) आगत अर्थ में (अन्यतरस्याम्) विकल्प से (रूप्य:) रूप्य प्रत्यय होता है और पक्ष में यथाविहित प्रत्यय होता है। उदा०-हित) सम-उपयुक्त हेतु से आया हुआ-समरूप्य (रूप्य)। समीय धन (छ)। विषम अनुपयुक्त हेतु से आया हुआ-विषमरूप्य (रूप्य)। विषमीय धन (छ)। (मनुष्य) देवदत्त से आया हुआ-देवदत्तरूप्य (रूप्य)। देवदत्त धन (अण)। यज्ञदत्त से आया हुआ-यज्ञदत्तरूप्य (रूप्य)। याज्ञदत्त धन (अण्)। सिद्धि-(१) समरूप्यम् । सम+डसि+रूप्य। सम+रूप्य। समरूप्य+सु। समरूप्यम्। यहां पञ्चमी-समर्थ, हेतुवाची 'सम' शब्द से आगत अर्थ में इस सूत्र से 'रूप्य' प्रत्यय है। ऐसे ही-देवदत्तरूप्यम्, यज्ञदत्तरूप्यम् । (२) समीयम् । सम+डसि+छ। सम्+ईय। समीय+सु । समीयम्। यहां पूर्वोक्त 'सम' शब्द से आगत अर्थ में विकल्प पक्ष में गहादिभ्यश्च (४।२।१३८) से यथाविहित 'छ' प्रत्यय होता है। आयनेय०' (७।१।२) से 'छ' के स्थान में 'ईय्' आदेश और 'यस्येति च (६।४।१४८) से अंग के अकार का लोप होता है। ऐसे ही विषम' शब्द से-विषमीयम् । (३) दैवदत्तम् । देवदत्त+डसि+अण्। दैवदत्त्+अ। देवदत्त+अ। दैवदत्त+सु। देवदत्तम्। यहां पञ्चमी-समर्थ, मनुष्यविशेषवाची देवदत्त' शब्द से आगत अर्थ में विकल्प पक्ष में यथाविहित प्रत्यय का विधान किया गया है। अत: प्राग्दीव्यतोऽण् (४।११८३) से यथाविहित प्रागदीव्यतीय 'अण' प्रत्यय होता है। शेष कार्य पूर्ववत् है। ऐसे ही यज्ञदत्त' शब्द से-याज्ञदत्तम्। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003298
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages624
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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