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________________ ३७१ चतुर्थाध्यायस्य तृतीयः पादः _ आय इति स्वामिग्राह्यो भाग उच्यते । स यस्मिन्नुत्पद्यते तदाऽऽयस्थानमिति कथ्यते। उदा०-शुल्कशालाया आगत: शौल्कशालिक:। आकरादागतम्आकरिक द्रव्यम्। आर्यभाषा: अर्थ-(तत:) सप्तमी-समर्थ (आयस्थानेभ्यः) आयस्थानवाची प्रातिपदिकों से (आगतः) आगत अर्थ में (ठक्) ठक् प्रत्यय होता है। स्वामी के द्वारा ग्रहण करने योग्य भाग को 'आय' कहते हैं। उस आय का जिस स्थान पर उत्पादन होता है उसे 'आयस्थान' कहते हैं। . उदा०-शुल्कशाला (चुंगी आदि) से आया हुआ भाग-शौल्कशालिक । आकर (खान) से आया हुआ-आकरिक द्रव्य (माळ)। सिद्धि-शौल्कशालिकः । शुल्कशाला+डसि+ठक् । शौल्कशाल+इक। शौल्कशालिक+सु। शौल्कशालिकः। यहां पञ्चमी-समर्थ 'शुल्कशाला' शब्द से आगत अर्थ में इस सूत्र से ठक्' प्रत्यय है। ठस्येकः' (७।३।५०) ' के स्थान में इक्' आदेश, तद्धितेष्वचामादेः' (७।२।११७) से अंग को आदिवृद्धि और यस्येति च' (६।४।१४८) से अंग के आकार का लोप होता है। ऐसे ही-आकरिकः । अण् (३)शुण्डिकाभ्योऽण् ।७६। प०वि०-शुण्डिक-आदिभ्य: ५।३ अण् १।१ । स०-शुण्डिक आदिर्येषां ते शुण्डिकादय:, तेभ्य:-शुण्डिकादिभ्य: (बहुव्रीहिः)। अनु०-तत: आगत इति चानुवर्तते । अन्वय:-तत: शुण्डिकादिभ्य आगतोऽण् । अर्थ:-तत इति पञ्चमीसमर्थेभ्य: शुण्डिकादिभ्यः प्रातिपदिकेभ्य आगत इत्यस्मिन्नर्थेऽण् प्रत्ययो भवति। उदा०-शुण्डिकाद् आगत: शौण्डिकः, कृकणाद् आगत: कार्कणः । उदपानाद् आगत औदपान:, इत्यादिकम् । शुण्डिक। कृकण। स्थण्डिल। उदपान। उपल। तीर्थ। भूमि। तृण। पर्ण। इति शुण्डिकादयः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003298
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages624
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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