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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् __आर्यभाषा: अर्थ-(तत:) पञ्चमी-समर्थ (शुण्डिकादिभ्यः) शुण्डिक आदि प्रातिपदिकों से (आगत:) आगत अर्थ में (अण्) अण् प्रत्यय होता है।
उदा०-शुण्डिक कलाल (शराब बनानेवाला) से आया हुआ भाग-शौण्डिक । कृकण (भारद्वाज देश) से आया हुआ भाग-कार्कण। उदपान (कूपसमीपवर्ती होद) से आया हुआ भाग-औदपान, इत्यादि।
सिद्धि-शौण्डिकः । शुण्डिक+डसि+अण् । शौण्डिक्+अ । शौण्डिक+सु। शौण्डिकः ।
यहां पञ्चमी-समर्थ 'शुण्डिक' शब्द से आगत अर्थ में इस सूत्र से 'अण्' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है। ऐसे ही-कार्कण आदि। वुञ्
(४) विद्यायोनिसम्बन्धेभ्यो वुञ्।७७। प०वि०-विद्या-योनिसम्बन्धेभ्य: ५।३ वुञ् १।१ ।
स०-विद्या च योनिश्च ते विद्यायोनी, ताभ्याम्-विद्यायोनिभ्याम्, विद्यायोनिभ्यां कृत: सम्बन्ध एषां ते विद्यायोनिसम्बन्धाः, तेभ्य:विद्यायोनिसम्बन्धेभ्य: (इतरेतरयोगद्वन्द्वगर्भितबहुव्रीहि:)।
अनु०-तत:, आगत इति चानुवर्तते। अन्वय:-ततो विद्यायोनिसम्बन्धेभ्य आगतो वुञ्।
अर्थ:-तत इति पञ्चमीसमर्थेभ्यो विद्यासम्बन्धवाचिभ्यो योनिसम्बन्धवाचिभ्यश्च प्रातिपदिकेभ्य आगत इत्यस्मिन्नर्थे वुञ् प्रत्ययो भवति।
उदा०-(विद्यासम्बन्ध:) उपाध्यायादागतम् औपाध्यायकम् । आचार्यादागतम् आचार्यकम्। शिष्यादागतं शैष्यकम्। (योनिसम्बन्ध:) मातामहादागतं मातामहकम्। मातुलादागतं मातुलकम्। पितामहादागतं पैतामहकम्।
आर्यभाषा: अर्थ-(तत:) पञ्चमी-समर्थ (विद्यायोनिसम्बन्धेभ्य:) विद्यासम्बन्धवाची और योनिसम्बन्धवाची प्रातिपदिकों से (आगत:) आगत अर्थ में (वुञ्) वुञ् प्रत्यय होता है।
उदा०-(विद्यासम्बन्ध) उपाध्याय से आया हुआ-औपाध्यायक (द्रव्य)। आचार्य से आया हुआ-आचार्यक (द्रव्य)। शिष्य से आया हुआ-शैष्यक (द्रव्य)। (योनिसम्बन्ध) मातामह (नाना) से आया हुआ-मातामहक (द्रव्य)। मातुल (मामा) से आया हुआ-मातुलक (व्य)। पितामह (दादा) से आया हुआ-पैतामहक (व्य)।
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