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________________ चतुर्थाध्यायस्य तृतीयः पादः उदा०-ग्रीवासु भवं ग्रैवम् (अण् ) । ग्रैवेयम् (ढञ्) । आर्यभाषाः अर्थ- (तत्र) सप्तमी विभक्ति-समर्थ (ग्रीवाभ्य:) ग्रीवा प्रातिपदिक से (भवः) भव अर्थ में (अण्) अण् (च) और ढञ् प्रत्यय होता है । उदा० - ग्रीवा = धमनियों में होनेवाला - ग्रैव (अण्) । ग्रैवेय (ढञ्) । सिद्धि - (१) ग्रैवम् । ग्रीवा+सुप्+अण् । ग्रैव्+अ। ग्रैव् +अ । ग्रैव+सु । ग्रैवम् । यहां सप्तमी - समर्थ 'ग्रीवा' शब्द से भव अर्थ में इस सूत्र से 'अण्' प्रत्यय है । शेष कार्य पूर्ववत् है । (२) ग्रैवेयम् । ग्रीवा+सुप्+ढञ् । ग्रैव्+एय । ग्रैवेय+सु । ग्रैवेयम् । यहां पूर्वोक्त 'ग्रीवा' शब्द से भव अर्थ में इस सूत्र से 'ढञ्' प्रत्यय है । 'द्' के स्थान में पूर्ववत् 'एय्' आदेश, अंग को आदिवृद्धि और अंग के आकार का लोप होता है। विशेष: यहां 'ग्रीवाभ्य:' शब्द में बहुवचन के पाठ से ग्रीवा में विद्यमान धमनियों का ग्रहण किया जाता है। ञ्यः (६) गम्भीराञ्ञ्यः । ५८ । प०वि०- गम्भीरात् ५ ।१ ञ्यः १ । १ । अनु० - तत्र भव इति चानुवर्तते । अन्वयः-तत्र गम्भीराद् भवो ञ्यः । , अर्थ:-तत्र इति सप्तमीविभक्तिसमर्थाद् गम्भीरात् प्रातिपदिकाद् भव इत्यस्मिन्नर्थे ञ्यः प्रत्ययो भवति । उदा० - गम्भीरे भवं गाम्भीर्यम् । आर्यभाषा: अर्थ - (तत्र) सप्तमी विभक्ति - समर्थ (गम्भीरात्) गम्भीर प्रातिपदिक से (भव:) भव अर्थ में (ञ्यः) व्य प्रत्यय होता है। उदा०- गम्भीर में होनेवाला - गाम्भीर्य । गम्भीर = शान्त एवं महाशय पुरुष । सिद्धि-गाम्भीर्यम् । गम्भीर+ङि+ज्य । गाम्भीर्+य । गाम्भीर्य + सु । गाम्भीर्यम् । यहां सप्तमी-समर्थ 'गम्भीर' शब्द से भव अर्थ में इस सूत्र से व्य' प्रत्यय है। पूर्ववत् अंग को आदिवृद्धि और अंग के अकार का लोप होता है। ञ्यः (७) अव्ययीभावाच्च । ५६ । प०वि०-अव्ययीभावात् ५ ।१ च अव्ययपदम् । अनु० - तत्र, भवः, ञ्य इति चानुवर्तते । Jain Education International ३५३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003298
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages624
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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