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चतुर्थाध्यायस्य तृतीयः पादः
३४६ उदा०-निशायां व्याहरति मृगो नैशः (अण्) नैशिक: (ठञ्) । प्रदोषे व्याहरति मृग: प्रादोष: (अण्) प्रादोषिक: (ठञ्) ।
आर्यभाषा: अर्थ-(तत्र) सप्तमी-विभक्ति-समर्थ (कालात्) कालविशेषवाची प्रातिपदिक से (व्याहरति-मृग:) मृग बोलता है अर्थ में यथाविहित प्रत्यय होता है।
उदा०-जो मृग निशा-रात्रि में बोलता है वह-नैश (अण्) । नैशिक (ठञ्)। जो मृग प्रदोष=रात्रि के प्रथम प्रहर में बोलता है वह-प्रादोष (अण्)। प्रादोषिक (ठञ्।।
सिद्धि-नैश आदि पदों की सिद्ध निशाप्रदोषाभ्यां च' (४।३।१४) के प्रवचन में देख लेवें।
अस्य (षष्ठी) अर्थप्रत्ययविधिः यथाविहितं प्रत्ययः
(१) तदस्य सोढम्।५२। प०वि०-तद् १।१ अस्य ६।१ सोढम् १।१। अनु०-कालादित्यनुवर्तते। अन्वय:-तत् कालाद् अस्य यथाविहितं प्रत्यय: सोढम् ।
अर्थ:-तदिति प्रथमासमर्थात् कालविशेषवाचिन: प्रातिपदिकाद् अस्येति षष्ठ्यर्थे यथाविहितं प्रत्ययो भवति, यत्प्रथमासमर्थं सोढं चेत् तद् भवति ।
उदा०-निशासहचरितसोढमध्ययनं निशा । निशा सोढाऽस्य छात्रस्यनैशश्छात्र: (अण्)। नैशिकश्छात्र: (ठञ्) । प्रदोषसहचरितसोढमध्ययनं प्रदोषः । प्रदोष: सोढोऽस्य छात्रस्य प्रादोषश्छात्र: (अण्) । प्रादोषिकश्छात्र: (ठञ्)।
आर्यभाषा: अर्थ-(तत्) प्रथमा-विभक्ति-समर्थ (कालात्) कालविशेषवाची प्रातिपदिक से (अस्य) षष्ठी-विभक्ति के अर्थ में यथाविहित प्रत्यय होता है (सोढम्) जो प्रथमा-समर्थ है यदि वह सोढ सहन किया हुआ हो।
उदा०-निशा सहित सहन किया हुआ अध्ययन निशा' कहाता है। वह निशा' जिस छात्र ने सहन की है वह-नैश छात्र (अण्) नैशिक छात्र (ठञ्) । प्रदोष सहित सहन किया हुआ अध्ययन प्रदोष' कहाता है। वह प्रदोष' (रात्रि का प्रथम पहर) जिस छात्र ने सहन किया है वह-प्रादोष छात्र (अण्)। प्रादोषिक छात्र (ठञ्)।
सिद्धि-नैश' आदि पदों की सिद्धि निशाप्रदोषाभ्यां च (४३१४)के प्रवचन में देख लेवें।
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