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________________ ३३१ चतुर्थाध्यायस्य तृतीयः पादः अर्थ:-तत्र इति सप्तमीविभक्तिसमर्थाद् अमावास्या-शब्दात् प्रातिपदिकाज्जात इत्यस्मिन्नर्थे अश्च प्रत्ययो भवति । उदा०-अमावास्यायां जात:-अमावास्यः । आर्यभाषा अर्थ-(तत्र) सप्तमी-विभक्ति-समर्थ (अमावास्यायाः) अमावास्या प्रातिपदिक से (जात:) जात अर्थ में (अ:) अ प्रत्यय (च) भी होता है। उदा०-अमावास्यायां जात:-अमावास्यः । अमावास्या में उत्पन्न हुआ-अमावास्य। सिद्धि-अमावास्यः । अमावास्या+डि+अ। अमावास्य+अ। अमावास्य+सु । अमावास्यः। यहां सप्तमी-समर्थ 'अमावास्या' शब्द से जात अर्थ में इस सूत्र से 'अ' प्रत्यय है। पूर्ववत् अंग के आकार का लोप होता है। विशेष: 'एकदेशविकृतमनन्यवद् भवति अर्थात् किसी का एक अंग विकृत हो जाये तो वह कोई अन्य नहीं बन जाता। यदि कुत्ते की पूछ कट जाये तो वह गधा वा घोड़ा नहीं बन जाता अपितु कुत्ता ही रहता है। इस व्याकरण-परिभाषा के आश्रय से अमावास्या' शब्द के समान 'अमावस्या' शब्द से भी वुन्, अण् और अ प्रत्यय होते हैं। अमावस्यक: (वुन्) । आमावस्य: (अण्)। अमावस्य: (अ.)। कन् (८) सिन्ध्वपकराभ्यां कन्।३२। प०वि०-सिन्धु-अपकराभ्याम् ५ ।२ कन् १।१। स०-सिन्धुश्च अपकरश्च तौ सिन्ध्वपकरौ, ताभ्याम्-सिन्ध्वपकराभ्याम् (इतरेतरयोगद्वन्द्वः)। अनु०-तत्र, जात इति चानुवर्तते। अन्वय:-तत्र सिन्ध्वपकराभ्यां जात: कन्। अर्थ:-तत्र इति सप्तमीविभक्तिसमर्थाभ्यां सिन्ध्वपकराभ्यां प्रातिपदिकाभ्यां जात इत्यस्मिन्नर्थे कन् प्रत्ययो भवति। उदा०-(सिन्धुः) सिन्धौ जात: सिन्धुकः। (अपकर:) अपकरे जातोऽपकरकः। आर्यभाषा: अर्थ-(तत्र) सप्तमी-विभक्ति-समर्थ (सिन्ध्वपकराभ्याम्) सिन्धु और अपकर प्रातिपदिकों से (जात:) जात अर्थ में (कन्) कन् प्रत्यय होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003298
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages624
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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