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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदा०-(सिन्धु) सिन्धौ जात: सिन्धुकः । सिन्धु जनपद में उत्पन्न हुआ-सिन्धुक। (अपकर) अपकरे जातोऽपकरकः । अपकर में उत्पन्न हुआ-अपकरक।
सिद्धि-सिन्धुकः । सिन्धु+डि+कन्। सिन्धु+क। सिन्धुक+सु । सिन्धुकः ।
यहां सप्तमी-समर्थ सिन्धु' शब्द से जात अर्थ में इस सूत्र से कन्' प्रत्यय है। ऐसे ही-अपकरकः।
विशेष: (१) सिन्धु-प्राचीन सिन्धु नद आजकल की सिन्ध है। सिन्धु के नाम से उसके पूर्वी किनारे की तरफ पंजाब में फैला हुआ प्राचीन सिन्धु जनपद (सिन्धु सागर दुआब) था। सिन्धु नदी कैलास के पश्चिमी तटान्त से निकलकर काश्मीर को दो भागों में बांटती हुई गिलगिट-चिलास (प्राचीन दरद् देश) में घुसकर दक्षिणवाहिनी होती हुई दरद् के चरणों में पहली बार मैदान में उतरती है (पाणिनीकालीन भारतवर्ष पृ० ५०)।
(२) अपकर-बहुत सम्भव है, मियांवाली जिले का भखर हो। सिन्धु जनपद में यह दक्खिनी रास्ते का नाका था, जहां सिन्धु नदी पार करके प्राचीन गोमती (आधुनिक-गोमल) के किनारे गोमल दर्रे से गजनी को रास्ता जाता था। व्यापारिक और सामरिक दृष्टि से भखर या भक्खर महत्त्वपूर्ण घाटा था (पाणिनीकालीन भारतवर्ष पृ० ५०)। अण्+अञ्
(६) अणौ च।३३। प०वि०-अण्-अौ १।२ च अव्ययपदम्। स०-अण् च अञ् च तौ-अणौ (इतरेतरयोगद्वन्द्वः) । अनु०-तत्र, जात:, सिन्ध्वपकराभ्यामिति चानुवर्तते । अन्वय:-तत्र सिन्ध्वपकराभ्यां जातोऽणौ च ।
अर्थ:-तत्र इति सप्तमीविभक्तिसमर्थाभ्यां सिन्ध्वपकराभ्यां प्रातिपदिकाभ्यां जात इत्यस्मिन्नर्थेऽणजौ च प्रत्ययौ भवत: ।
- उदा०-(सिन्धुः) सिन्धौ जात: सैन्धवः (अण्) । सैन्धव: (अञ्) । (अपकर:) अपकरे जात आपकर (अण्) । आपकर: (अञ्) ।
आर्यभाषा: अर्थ-(तत्र) सप्तमी-विभक्ति-समर्थ (सिन्ध्वपकराभ्याम्) सिन्धु और अपकर प्रातिपदिकों से (जात:) जात अर्थ में (अणौ) अण् और अञ् प्रत्यय (च) भी होते हैं।
उदा०-(सिन्धु) सिन्धौ जात: सैन्धवः (अण्)। सैन्धवः (अञ्) । सिन्धु जनपद में उत्पन्न हुआ-सैन्धव। (अपकर) अपकरे जात आपकर (अण्)। आपकर: (अ)। अपकर में उत्पन्न हुआ-आपकर।
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