SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 361
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३२४ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् अव्यय:-यथासम्भव०कालेभ्य: सायंचिरंप्राह्णप्रगेऽव्ययेभ्य: शेषे ट्युट्युलौ तुट च। अर्थ:-यथासम्भवविभक्तिसमर्थेभ्य: कालविशेषवाचिभ्य: सायंचिरंप्राणेप्रगेऽव्ययेभ्यः प्रातिपदिकेभ्यः शेषेष्वर्थेषु ट्यु-ट्युलौ प्रत्ययौ भवतस्तयोश्च तुडागमो भवति । उदा०-(सायम्) सायं भवं सायन्तनम्। (चिरम्) चिरं भवं चिरन्तनम्। (प्राणे) प्राणे भवं प्राणैतनम्। (प्रगे) प्रगे भवं प्रगेतनम् । (अव्ययम्) दिवा भवं दिवातनम् । दोषा भवं दोषातनम्। ___ आर्यभाषा: अर्थ-यथासम्भव-विभक्ति-समर्थ (कालात्) कालविशेषवाची (सायं०अव्ययेभ्य:) सायम्, चिरम्, प्राणे, प्रगे, अव्यय प्रातिपदिकों से (शेषे) शेष अर्थों में (ट्युट्युलौ) ट्यु और ट्युत् प्रत्यय होते हैं (च) और उन्हें (तुट्) तुट् आगम होता है। उदा०-(सायम्) सायं भवं सायन्तनम् । सायंकाल होनेवाला-सायंतन। (चिरम्) चिरं भवं चिरन्तनम् । चिर-देर में होनेवाला-चिरन्तन। (प्राणे) प्राणे भवं प्राणैतनम् । दिन के प्रथम पहर में होनेवाला-प्राणेतन। (प्रगे) प्रगे भवं प्रगेतनम् । प्रगे-बड़े तड़के (भोर) में होनेवाला-प्रगेतन। (अव्यय) दिवा भवं दिवातनम् । दिन में होनेवाला-दिवातन। दोषा भवं दोषातनम् । दोषा-रात्रि में होनेवाला-दोषातन। सिद्धि-सायंतनम् । सायम्+डि+ट्यु। सायम्+तुट्+अन। सायं+त्+अन । सायंतन+सु । सायन्तनम्। यहां सप्तमी-समर्थ सायम्' शब्द से शेष अर्थों में इस सूत्र से 'ट्यु' प्रत्यय और उसको तुट' आगम होता है। युवोरनाकौं' (७।१।१) से यु' के स्थान में 'अन' आदेश होता है। ऐसे ही चिरंतनम्' आदि। विशेष: यहां 'आधुदात्तश्च' (३।१।३) से प्रत्यय का आधुदात्त स्वर होता है-सायन्तनम् । जहां ट्युत् प्रत्यय होता है वहां लिति' (६।१।१९०) से प्रत्यय से पूर्व अच् उदात्त होता है--सायन्तनम् । यही ट्यु और ट्युत् प्रत्यय में अन्तर है। (२) सायम् और चिरम् शब्द मकरान्त निपातित हैं। प्राणे और प्रगे शब्द एकारान्त निपातित हैं। ट्यु-ट्युल्विकल्पः __ (७७) विभाषा पूर्वाणापराहणाभ्याम् ।२४। प०वि०-विभाषा ११ पूर्वाह्ण-अपराह्णाभ्याम् ५।२। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003298
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages624
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy