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चतुर्थाध्यायस्य द्वितीयः पादः उदा०-पर्वते भव: पर्वतीयो राजा। पर्वतीय: पुरुषः ।
आर्यभाषा: अर्थ-यथासम्भव-विभक्ति-समर्थ (पर्वतात्) पर्वत प्रातिपदिक से (शेषे) शेष अर्थों में (छ:) छ प्रत्यय होता है।
उदा०-पर्वते भव: पर्वतीयो राजा । पर्वत पर रहनेवाला पर्वतीय राजा । पर्वतीय: पुरुषः । पर्वत पर रहनेवाला पुरुष।
सिद्धि-पर्वतीय । यहां सप्तमी-समर्थ पर्वत' शब्द से शेष अर्थों में छ' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है। छ-विकल्पः
(५३) विभाषाऽमनुष्ये ।१४३। प०वि०-विभाषा १।१ अमनुष्ये ७।१। स०-न मनुष्य इति अमनुष्य:, तस्मिन्-अमनुष्ये (नञ्तत्पुरुषः)। अनु०-शेषे, छ:, पर्वताद् इति चानुवर्तते। अन्वय:-यथासम्भव०पर्वतात् शेषे विभाषा छोऽमनुष्ये।
अर्थ:-यथासम्भवविभक्तिसमर्थात् पर्वतात् प्रातिपदिकात् शेषेष्वर्थेषु विकल्पेन छ: प्रत्ययो भवति, अमनुष्येऽभिधेये। पक्षे च अण् प्रत्ययो भवति।
__ उदा०-पर्वते जातानि पर्वतीयानि फलानि । पर्वते जातं पर्वतीयमुदकम् (छ:)। पार्वतानि फलानि । पार्वतमुदकम् (अण्) ।
आर्यभाषा: अर्थ-यथासम्भव-विभक्ति-समर्थ (पर्वतात्) पर्वत प्रातिपदिक से (शेषे) शेष अर्थों में (विभाषा) विकल्प से (छ:) छ प्रत्यय होता है (अमनुष्ये) यदि वहां मनुष्य अर्थ अभिधेय न हो। पक्ष में औत्सर्गिक अण् प्रत्यय होता है।
उदा०-पर्वते जातानि पर्वतीयानि फलानि। पर्वत पर उत्पन्न हुये-पर्वतीय फल। पर्वते जातं पर्वतीयमुदकम् । पर्वत पर उत्पन्न हुआ-पर्वतीय जल (छ:)। पार्वतानि फलोनि । पर्वत पर उत्पन्न हुये-पार्वत फल । पार्वतमुदकम् । पर्वत पर उत्पन्न हुआ-पार्वत जल (अण्)।
सिद्धि (१) पर्वतीयम् । यहां सप्तमी-समर्थ पर्वत' शब्द से शेष अर्थों में इस सूत्र से 'छ' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है।
(२) पार्वतम् । यहां सप्तमी-समर्थ पर्वत' शब्द से विकल्प पक्ष में प्रागदीव्यतोऽण' (४।१४८३) से औत्सर्गिक अण् प्रत्यय है। तद्धितेष्वचामादेः' (७।२।११७) से अंग को आदिवृद्धि और 'यस्येति च (६।४।१४८) से अंग के अकार का लोप होता है।
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