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________________ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् ३०२ माहकिपलदे जातं माहकिपलदीयम् । ( नगरम् ) दाक्षिनगरे जातं दाक्षिनगरीयम्। माहकिनगरे जातं माहकिनगरीयम् । ( ग्राम: ) दाक्षिग्रामे जातं दाक्षिग्रामीयम् । माहकिग्रामे जातं माहकिग्रामीयम् । ( हद: ) दाक्षिहदे जातं दाक्षिह्रदयम् । माहकिदे जातं माहकिहृदीयम् । आर्यभाषाः अर्थ-यथासम्भव-विभक्ति-समर्थ ( देशे) देशवाची ( वृद्धात्) वृद्धसंज्ञक (कन्था० उत्तरपदात् ) कन्था, पलद, नगर, ग्राम, हृद उत्तरपदवान् प्रातिपदिकसे (शेषे) शेष अर्थों में (छः) छ प्रत्यय होता है। उदा०० - संस्कृत-भाग में देख लेवें । अर्थ इस प्रकार है- ( कन्था) दाक्षिकन्थ देश में उत्पन्न-दाक्षिकन्थीय। माहकिकन्थ देश में उत्पन्न- माहकिकन्थीय । ( पलद) दाक्षिपलद देश में उत्पन्न-दाक्षिपलदीय । माहकिपलद में उत्पन्न- माहकिपलदीय। (ग्राम) दाक्षिग्राम में उत्पन्न-दाक्षिग्रामीय । माहकि ग्राम में उत्पन्न - माहकिग्रामीय । ( हद) दाक्षिहद में उत्पन्न - दाक्षिहदीय । माहकिहद में उत्पन्न- माहकिह्रदीय । सिद्धि-दाक्षिकन्थीय । यहां सप्तमी - समर्थ, देशवाची वृद्धसंज्ञक कन्था - उत्तरपदवान् 'दाक्षिकन्थ' शब्द से शेष अर्थों में इस सूत्र से 'छ' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है । ऐसे ही 'माहकिकन्थीय:' आदि । विशेष - (१) कन्था - मूल में यह शक भाषा का शब्द था, जिसमें 'कन्थ' का अर्थ नगर होता था (पाणिनिकालीन भारतवर्ष पृ० ८० ) । (२) पलद- अथर्ववेद (९1३1५,७१) के अनुसार पलद का अर्थ फूंस या पयार होता था। इससे ज्ञात होता है कि सरपत के झुंडों के लिए पलद शब्द लोक में प्रचलित था और जो गांव उनके पास बसाये जाते थे उनके नाम में पलद- उत्तरपद का प्रयोग होता था (पाणिनिकालीन भारतवर्ष पृ० ८० ) । (३) हद - पानी की नीची दह के पास बसे हुये गांवों के नामों में हृद जुड़ता था, जैसे- दाक्षिहद (पाणिनिकालीन भारतवर्ष पृ० ८० ) । छ : प०वि० पर्वतात् ५ | १ च अव्ययपदम् । अनु० - शेषे इत्यनुवर्तते । देशे इति चासम्भवान्न सम्बध्यते । अन्वयः-यथासम्भव०पर्वताच्च शेषे छः । अर्थः-यथासम्भवविभक्तिसमर्थात् पर्वतात् प्रातिपदिकाच्च शेषेष्वर्थेषु - छः प्रत्ययो भवति । (५२) पर्वताच्च । १४२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003298
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages624
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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