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चतुर्थाध्यायस्य द्वितीयः पादः
ર૬૭ उदा०-(गौ) साल्वे जात. साल्वको गौः। साल्व देश में उत्पन्न गौ-बैल साल्वक । साल्व देश के बैल प्रसिद्ध हैं। (यवागू) साल्वे जाता साल्विका यवागू: । साल्व देश में बनी साल्विका यवागू लापसी (राबड़ी)। साल्व देश (जयपुर-बीकानेर) की राबड़ी प्रसिद्ध है।
सिद्धि-(१) साल्वकः । इस शब्द की सिद्धि पूर्ववत् है।
(२) साल्विका: । यहां स्त्रीत्व-विवक्षा में 'अजाद्यतष्टाप्' (४।१।४) से टाप प्रत्यय और प्रत्ययस्थात्कात्०' (७।३।४४) से इत्व होता है। शेष कार्य पूर्ववत् है। छ:
(४६) गतॊत्तरपदाच्छः।१३६ | प०वि०-गर्त-उत्तरपदात् ५।१ छ: १।१।
स०-गर्त उत्तरपदं यस्य तद् गतॊत्तरपदम्, तस्मात्-गलॊत्तरपदात् (बहुव्रीहि:)।
अनु०-शेषे, देशे इति चानुवर्तते। अन्वय:-यथासम्भव०देशे गर्तोत्तरपदात् शेषे छः ।
अर्थ:-यथासम्भवविभक्तिसमर्थाद् देशवाचिनो गर्तोत्तरपदात् प्रातिपदिकात् शेषेष्वर्थेषु छ: प्रत्ययो भवति ।
उदा०-वृकगर्ते जातो वृकगीयः । शृगालगर्ते जात: शृगालगीयः । श्वाविद्गर्ते जात: श्वाविद्गर्तीयः ।।
आर्यभाषा: अर्थ-यथासम्भव-विभक्ति-समर्थ दिशे) देशवाची (गत्तॊत्तरपदात्) गत-उत्तरपदवान् प्रातिपदिक से (शेषे) शेष अर्थों में (छ:) छ प्रत्यय होता है।
उदा०-वृकगर्ते जातो वृकगीयः । वाहीक देश (पंजाब) के वृकगत' नामक ग्राम में उत्पन्न हुआ-वकगीय। शृगालगतें जात: शृगालगीयः । वाहीक देश के शृगालगत नामक ग्राम में उत्पन्न हुआ-शृगालगीय । श्वाविद्गर्ते जात: श्वाविद्गीयः । वाहीक देश के श्वाविद्गर्त नामक ग्राम में उत्पन्न हुआ-पवाविद्गीय।
सिद्धि-वृकगीय: । वृकगत डि+छ। वृकगत ईय । वृकगीय+सु । वृकगीयः ।
यहां सप्तमी-समर्थ, देशवाची, गर्त-उत्तरपदवान् वृकगर्त' शब्द से शेष अर्थों में इस सूत्र से 'छ' प्रत्यय है। 'आयनेय०' (७।१।२) से 'छ' के स्थान में ईय् आदेश और 'यस्येति च (२।४।१४८) से अंग के अकार का लोप होता है। ऐसे ही-शृगालगीयः, ग्वाविद्गीयः । श्वाविद्=कुत्ते मारनेवाला।
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