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चतुर्थाध्यायस्य द्वितीयः पादः
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उदा०- ( कुरु: ) कुरुषु भवः कौरवकः (वुञ् ) । कौरव: (अण् ) । ( युगन्धरः ) युगन्धरेषु भवो यौगन्धरकः ( वुञ् ) | यौगन्धरः (अण् ) ।
आर्यभाषाः अर्थ-यथासम्भव-विभक्ति-समर्थ (देशे) देशवाची (कुरुयुन्धराभ्याम्) कुरु, युगन्धर प्रातिपदिकों से (शेषे) शेष अर्थों में (विभाषा) विकल्प से (वुञ) वुञ् प्रत्यय होता है, पक्ष में अण् प्रत्यय होता है ।
उदा०- (कुरु) कुरुषु भवः कौरवक: ( वुञ् ) । कौरव: ( अण् ) । कुरु देश में रहनेवाला-कौरवक वा कौरव । (युगन्धर) युगन्धरेषु भवो यौगन्धरकः ( वुञ् ) 1. यौगन्धरः ( अण्) । युगन्धर ( जगाधरी ) देश में रहनेवाला - यौगन्धरक वा यौगन्धर ।
सिद्धि - (१) कौरवक: । कुरु+ङि+वुञ् । कौरो+अक । कौरवक+सु । कौरवकः । यहां सप्तमी-समर्थ, देशवाची 'कुरु' शब्द से शेष अर्थों में इस सूत्र से 'वुञ्' प्रत्यय है। 'ओर्गुण:' (६।४।१४६ ) से अंग को गुण होता है। शेष कार्य पूर्ववत् है ।
(२) कौरव: । कुरु+ङि+अण् । कौरो+अ । कौरव+सु । कौरवः ।
यहां सप्तमी समर्थ, देशवाची शब्द से शेष अर्थों में विकल्प पक्ष में 'कच्छादिभ्यश्च' (४/२/१३३) से 'अण्' प्रत्यय है।
(३) यौगन्धरक: । यहां 'युगन्धर' शब्द से पूर्ववत् वुञ् प्रत्यय है ।
(४) यौगन्धरः | यहां युगन्धर' शब्द से विकल्प पक्ष में 'प्राग्दीव्यतोऽण्' (४/१/८३) से औत्सर्गिक 'अण्' प्रत्यय है,
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विशेष - (१) कुरु - दिल्ली और मेरठ का प्रदेश ।
(२) युगन्धर-यह राज्य सम्भवतः अम्बाला जिले में सरस्वती से यमुना तक फैला हुआ था । देहरादून जिले में कालसी के पास जगत ग्राम में प्राप्त लेख से ज्ञात होता है कि वह इलाका युग शैल देश था (युग नाम पहाड़ी प्रदेश) कहलाता था ।
कन्
युगेश्वरस्याश्वमेधे युगशैलमहीपतेः । इष्टका वार्षगण्यस्य नृपतेश्शीलवर्मणः । ।
(पाणिनिकालीन भारतवर्ष पृ० ७३ ) ।
(३) 'युगन्धर' शब्द का अपभ्रंश 'जगाधरी' है ।
(४०) मद्रवृज्योः कन् । १३० । प०वि०-मद्र-वृज्योः ६।२ (पञ्चम्यर्थे) कन् १।१। सo - मद्रश्च वृजिश्च तौ मद्रवृजी, तयोः मद्रवृज्यो: (इतरेतर
योगद्वन्द्वः) ।
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