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________________ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् २८८ खंभात की खाड़ी के मस्तक पर साबरमती ( श्वभ्रमती) की धारा समुद्र में मिली है उसकी दाहिनी ओर का समुद्र-तट दारुकच्छ और बाई ओर का पिपलीकच्छ ह (पाणिनिकालीन भारतवर्ष पृ० ६६-६७) । (२) विभुजाग्नि, काण्डाग्नि-विभुजाग्नि कच्छ प्रदेश का भुज ज्ञात होता है और काण्डाग्नि कंडला बन्दरगाह के उत्तर-पूर्व में तपता हुआ रेगिस्तान। ये दोनों नाम कच्छ के छोटे रन्न और बड़े रन्न (इरिन) ही हो सकते हैं (पाणिनिकालीन भारतवर्ष पृ० ६७ ) । (३) इन्द्रवक्त्र, सिन्धुवक्त्र - सिन्ध प्रान्त का प्रदेश सिन्धुवक्त्र और बलोचिस्तान का प्रदेश इन्द्रवक्त्र कहलाता था । सिन्धुवक्त्र प्रदेश में खेती सिन्ध नदी पर निर्भर थी और इन्द्रवक्त्र में वर्षा पर । पहला प्रदेश नदीमातृक था और दूसरा देवमातृक । सभा - पर्व में इन दोनों प्रदेशों का स्पष्ट वर्णन एक साथ आया है : इन्द्रकृष्यैर्वर्तयन्ति धान्यैर्ये च नदीमुखैः । समुद्रनिष्कुटे जाताः पारेसिन्धु च मानवा: । ५१ ।११ । (पाणिनिकालीन भारतवर्ष पृ० ७९ ) (४) बहुगर्त, चक्रगर्त- ये दोनों पुराने नाम जान पड़ते हैं । बहुगर्त सम्भवतः साबरमती (प्राचीन श्वभ्रमती) के काठे का नाम था, जिसके नाम का 'श्वभ्र' शब्द गड्ढे का पर्यायवाची है । चक्रगर्त संभवत: प्रभासक्षेत्र में स्थित चक्रतीर्थ की संज्ञा थी (पाणिनिकालीन भारतवर्ष पृ० ८० ) । वुञ् - (३६) धूमादिभ्यश्च । १२६ । प०वि० - धूम - आदिभ्यः ५ । ३ च अव्ययपदम् । सo - धूम आदिर्येषां ते धूमादय:, तेभ्य: - धूमादिभ्यः (बहुव्रीहि: ) । अनु० - शेषे, देशे, वुञ् इति चानुवर्तते । अन्वयः - यथासम्भव०देशे धूमादिभ्यः शेषे वुञ् । अर्थः-यथासम्भवविभक्तिसमर्थेभ्यो देशवाचिभ्यः प्रातिपदिकेभ्यः शेषेष्वर्थेषु वुञ् प्रत्ययो भवति । उदा० - धूमे जातो धौमक: । खण्डे जात: खाण्डकः । धूम। खण्ड। खडण्ड। शशादन । आर्जुनाद । दाण्डायनस्थली ।' माहकस्थली। घोषस्थली । माषस्थली । राजस्थली। राजगृह। सत्रासाह। भक्षास्थली। भद्रकूल। गर्त्तकूल । आञ्जीकूल । द्वयाहाव । त्र्याहाव। संहीय । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003298
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages624
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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