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________________ चतुर्थाध्यायस्य द्वितीयः पादः २५६ सिद्धि-कौलेयकः। कुल+डि+ढकञ्। कौल+एय् अक। कौलेयक+सु। कौलेयकः। यहां सप्तमी-समर्थ 'कुल' शब्द से 'भव' आदि शेष अर्थों में इस सूत्र से ढकञ्' प्रत्यय है। शेष कार्य कात्त्रेयकः' (४।२।९४) के समान है। ऐसे ही-कौक्षेयक:, प्रैवेयकः। ढक (६) नद्यादिभ्यो ढक्।६६। प०वि०-नदी-आदिभ्य: ५ ।३ ढक् १।१ । स०-नदी आदिर्येषां ते-नद्यादयः, तेभ्य:-नद्यादिभ्य: (बहुव्रीहि:)। अनु०-शेषे इत्यनुवर्तते। अन्वय:-यथासम्भव० नद्यादिभ्य: शेषे ढक् । अर्थ:-यथासम्भवविभक्तिसमर्थेभ्यो नद्यादिभ्य: प्रातिपदिकेभ्य: शेषेष्वर्थेषु ढक् प्रत्ययो भवति। उदा०-नद्यां भवं नादेयम्। मह्यां भवं माहेयम्। वाराणस्यां भवं वाराणसेयम्, इत्यादिकम्। नदी। मही। वाराणसी। श्रावस्ती। कौशाम्बी। नवकौशाम्बी। काशफरी । खादिरी। पूर्वनगरी । पावा। मावा। साल्वा । दार्वा । वासेनकी। वडवाया वृषे। इति नद्यादयः ।। आर्यभाषा: अर्थ-यथासम्भव विभक्ति-समर्थ (नद्यादिभ्यः) नदी-आदि प्रातिपदिकों से (शेषे) शेष अर्थों में (ढक्) ढक् प्रत्यय होता है। उदा०-नद्यां भवं नादेयम् । नदी में रहनेवाला-नादेय। मह्यां भवं माहेयम् । मही-पृथ्वी पर रहनेवाला-माहेय। वाराणस्यां भवं वाराणसेयम् । वाराणसी-बनारस में रहनेवाला-वाराणसेय। सिद्धि-नादेयम् । नदी+डि+ढक् । नाद्-एय् । नादेय+सु। नादेयम् । यहां सप्तमी-समर्थ नदी' शब्द से शेष 'भव' अर्थ में इस सूत्र से ढक्' प्रत्यय है। 'आयनेय०' (७१२) से 'द' के स्थान में एय' आदेश होता है। किति च' (७।२।११८) से अंग को आदिवृद्धि और यस्येति च' (६।४।१४८) से अंग के ईकार का लोप होता है। ऐसे ही-माहेयम्, वाराणसेयम् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003298
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages624
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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