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चतुर्थाध्यायस्य द्वितीयः पादः
२४७ प्रत्ययस्य लुप्-विकल्प:
(१७) शर्कराया वा।८२। प०वि०-शर्कराया: ५ १ वा अव्ययपदम्। अनु०-अस्मिन्नादिषु, देशे तन्नाम्नि, लुप् इति चानुवर्तते।
अन्वय:-यथासम्भव०शर्कराया अस्मिन्नादिषु प्रत्ययस्य वा लुप् तन्नाम्नि देशे।
अर्थ:-यथासम्भवविभक्तिसमर्थाद् शर्करा-शब्दात् प्रातिपदिकाद् अस्मिन्नादिषु चतुर्वर्थेषु विहितस्य प्रत्ययस्य विकल्पेन लुब् भवति, तन्नाम्नि देशेऽभिधेये।
__वा ग्रहणं किमर्थं यावता शर्कराशब्द: कुमुदादिषु वराहादिषु च (३।२।८०) पठ्यते, तत्र पाठसामर्थ्यात् प्रत्ययस्य पक्षे श्रवणं भविष्यति ? एवं तर्हि-एतज्ज्ञापयत्याचार्य: शर्कराशब्दादौत्सर्गिकोऽण् भवति, तस्यायं लुब् विकल्प्यते । गणपाठाच्च तयोः श्रवणं भवति, उत्तरसूत्रे च विहितौ ठक्छौ प्रत्ययौ भवत: । तदेवं षड्पाणि भवन्ति
उदा०-शर्करा अस्मिन् देशे सन्तीति-शर्करा (अण्-लुप्)। शार्कर: (अण्)। शरिक: (ठच्)। शार्करक: (कक्)। शारिक: (ठक्) । शर्करीय: (छ:)।
आर्यभाषा: अर्थ-यथासम्भव विभक्ति-समर्थ (शर्कराया:) शर्करा प्रातिपदिक से (अस्मिन्०) अस्मिन् आदि चार अर्थों में यथाविहित प्रत्यय का (वा) विकल्प से (लुप्) लोप होता है (तन्नाम्नि देशे) यदि वहा तन्नामक देश अर्थ अभिधेय हो।
यहां वा' का ग्रहण किसलिये किया है जबकि 'शर्करा' शब्द कुमुदादि और वाराहादि गण (३।२।८०) में पढ़ा है, वहां पाठ होने से विहित प्रत्यय का पक्ष में श्रवण होगा ही। वा-ग्रहण से आचार्य पाणिनि यह ज्ञापित करते हैं कि 'शर्करा' शब्द से जो औत्सर्गिक 'अण्' प्रत्यय होता है उसका यह लुप्-विकल्प है। उक्त गणों में पाठ होने से उन प्रत्ययों का भी श्रवण होता है। उत्तर-सूत्र (३।२।८४) से विहित ठक् और छ दो प्रत्यय भी होते हैं। इस प्रकार निम्नलिखित छ: रूप बनते हैं
___ उदा०-शर्करा अस्मिन् देशे सन्तीति-शर्करा (लुप्) । शर्करा रोड़ी (कांकर)। इस देश में है यह-शर्करा (लुप्), शार्कर (अण्), शरिक (ठच्), शार्करक (कक्), शारिक (ठक्), शर्करीय (छ)। कंकरीला देश।
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