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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदा०-संस्कृत भाग में देख लेवें। अर्थ इस प्रकार है-(सौवीर) दत्तामित्र के द्वारा बनवाई गई नगरी-दात्तामित्री नगरी। (साल्व) विधूमाग्नि के द्वारा बनवाई गई नगरी-वैधूमाग्नी नगरी। (प्राक्) ककन्द के द्वारा बनवाई गई नगरी-काकन्दी नगरी। मकन्द के द्वारा बनवाई गई नगरी-माकन्दी नगरी। मणिचर के द्वारा बनवाई गई नगरी-माणिचरी नगरी। जरुष के द्वारा बनवाई गई नगरी-जारुषी नगरी।
सिद्धि-दात्तामित्री। दत्तामित्र+टा+अञ्। दात्तामित्र+अ। दात्तामित्र+डीप् । दात्तामित्री+सु। दात्तामित्री।
___ यहां तृतीया-समर्थ, सौवीर देशवाची 'दत्तामित्र' शब्द से निर्वत्त अर्थ में इस सूत्र से अञ् प्रत्यय है। पूर्ववत् अंग को आदिवृद्धि और अंग के अकार का लोप होता है। स्त्रीत्व-विवक्षा में टिड्ढाणञ्' (४।१।१५) से डीप् प्रत्यय होता है। ऐसे ही-वैधूमाग्नी आदि शब्द सिद्ध करें।
विशेष-(१) अलवर से उत्तरी बीकानेर तक फैला हुआ प्रदेश प्राचीन साल्व' प्रतीत होता है (पाणिनि कालीन भारतवर्ष पृ० ७१)।
(२) इस समय जो सिन्ध प्रान्त है उसका पुराना नाम सौवीर' था (पाणिनि कालीन भारतवर्ष पृ० ५०)। अण्
(११) सुवास्त्वादिभ्योऽण् ७६। प०वि०-सुवास्त्वादिभ्य: ५।३ अण् १।१ ।
स०-सुवास्तुरादिर्येषां ते-सुवास्त्वादयः, तेभ्य:-सुस्वास्त्वादिभ्य: (बहुव्रीहि:)।
अनु०-अस्मिन्नादिषु, देशे तन्नाम्नि इति चानुवर्तते ।
अन्वय:-यथासम्भव० सुवास्त्वादिभ्योऽस्मिन्नादिषु अण् तन्नाम्नि देशे।
अर्थ:-यथासम्भवविभक्तिसमर्थेभ्य: सुवास्त्वादिभ्यः प्रातिपदिकेभ्योऽस्मिन्नादिषु चतुर्वर्थेषु अण् प्रत्ययो भवति, तन्नाम्नि देशेऽभिधेये।
उदा०-सुवास्तोरदूरभवं सौवास्तवं नगरम् । वर्णोरदूरभवं वार्णवं नगरम्।
सुवास्तु। वर्गु। भण्डु। खण्डु। कण्डु। सेचालिन्। कर्पूरन् । शिखण्डिन्। गत। कर्कश। शटीकर्ण। कृष्ण। कर्क। कर्कन्धूमती। गोह्य। गाहि। अहिसक्थ। (वृत्) इति सुवास्त्वादयः ।।
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