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चतुर्थाध्यायस्य द्वितीयः पादः आर्यभाषा: अर्थ-यथासम्भव विभक्ति-समर्थ (सुवास्त्वादिभ्यः) सुवास्तु आदि प्रातिपदिकों से (अस्मिन्०) अस्मिन् आदि चार अर्थों में (अण्) अण् प्रत्यय होता है (तन्नाम्नि देशे) यदि वहां तन्नामक देश अर्थ अभिधेय हो।
उदा०-सुवास्तोरदूरभवं नगरम्-सौवास्तवम् । सुवास्तु के समीप जो नगर है वह-सौवास्तव नगर । वर्णोरदूरभवं नगरम्-वार्णवं नगरम् । वर्ण के समीप जो नगर है वह-वार्णव नगर। _ सिद्धि-सौवास्तवम् । सुवास्तु+ङस्+अण्। सौवास्तव्+अ। सौवास्तव+सु । सौवास्तवम्।
यहां षष्ठी-समर्थ सुवास्तु' शब्द से 'अदूरभव' अर्थ में इस सूत्र से 'अण्' प्रत्यय है। पूर्ववत् अंग को आदिवृद्धि, 'ओर्गुण:' (६ ।४।१४६) से गुण और 'एचोऽयवायावः' (६।१।७५) से 'अव्' आदेश होता है। ऐसे ही वर्गु' शब्द से-वार्णवम् ।
विशेष-(१) सुवास्तु वैदिक काल की नदी थी, यह आजकल की स्वात है। इसकी पच्छिमी शाखा गौरी नदी (पंजकोरा) है। इन दोनों के बीच में उड्डियान था जो गंधार देश का एक भाग माना जाता था। यहीं स्वात की घाटी में प्राचीनकाल से आज तक एक विशेष प्रकार के कम्बल बुने जाते थे। पाणिनि ने पाण्डुकम्बल नाम से उनका उल्लेख (४।२।११) किया है (पाणिनिकालीन भारतवर्ष पृ० ५०)।
(२) वर्ण-सिन्धु की पच्छिमी सहायक नदी कुर्रम के किनारे, निचले हिस्से में बन्नू की दून (घाटी) थी। इसका वैदिक नाम कुमु' था। इसका ऊपरी पहाड़ी प्रदेश आज भी कुर्रम कहाता है और निचला मैदानी भाग बन्नू। पाणिनि ने इसी को वर्गु नद के नाम से प्रसिद्ध 'वर्गु' देश कहा है (४।२।१०३) । सुवास्त्वादिगण के अनुसार वर्ण के पास का प्रदेश 'वार्णव' कहलाता था (पाणिनिकालीन भारतवर्ष पृ० १५१)। अण्
(१२) रोणी ७७। प०वि०-रोणी (लुप्तपञ्चमी)। अनु०-अस्मिन्नादिषु, देशे, तन्नाम्नि इति चानुवर्तते। अन्वय:-यथासम्भव० रोण्या: अस्मिन्नादिषु अण् देशे तन्नाम्नि।
अर्थ:-यथासम्भवविभक्तिसमर्थाद् रोणीशब्दात् रोण्यन्ताच्च प्रातिपदिकाद् अस्मिन्नादिषु चतुर्वर्थेषु अण् प्रत्ययो भवति, तन्नाम्नि देशेऽभिधेये।
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