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________________ चतुर्थाध्यायस्य द्वितीयः पादः २३१ नगर का नाम विदिशा था। उसका वर्तमान नाम 'भेलसा' है। जो विदिशा का ही अपभ्रंश है। हिमवतोऽदूरभवं नगरम्-हैमवतं नगरम् । हिमालय के समीप नगर-हैमवत नगर। सिद्धि-वैदिशम् । विदिशा+डस्+अण्। वैदिश्+अ। वैदिश+सु। वैदिशम्। यहां षष्ठी-समर्थ विदिशा' शब्द से अदूरभव (समीप) अर्थ में इस सूत्र से यथाविहित 'अण्' प्रत्यय है। तद्धितेष्वचामादे: (७।२।११७) से अंग को आदिवृद्धि और यस्येति च' (६।४।१४८) से अंग के अकार का लोप होता है। ऐसे ही हिमवत्' शब्द से-हैमवतम्। अञ् (५) ओरञ्।७०। प०वि०-ओ: ५।१ अञ् १।१। अनु०-अस्मिन्नादयश्चत्वारोऽर्थाः, देशे, तन्नाम्नि इति चानुवर्तते । अन्वयः-यथासम्भवविभक्तिसमर्थाद् ओरस्मिन्नादिषु अञ् तन्नाम्नि देशे। अर्थ:-यथासम्भवविभक्तिसमर्थाद् उकारान्तात् प्रातिपदिकाद् अस्मिन्नादिषु चतुर्वर्थेषु अञ् प्रत्ययो भवति, तन्नाम्नि देशेऽभिधेये। उदा०-अरडवोऽस्मिन् सन्तीति-आर्डवो देश: । कक्षतवोऽस्मिन् सन्तीति-काक्षतवो देश: । ककटेलवोऽस्मिन् सन्तीति-काकटलवो देश: । आर्यभाषा: अर्थ-यथासम्भव विभक्ति-समर्थ (ओ:) उकारान्त प्रातिपदिक से (अस्मिन्०) अस्मिन् आदि चार अर्थों में (अञ्) अञ् प्रत्यय होता है (तन्नाम्नि देशे) यदि वहां तन्नामक देश अर्थ अभिधेय हो। उदा०-अरडवोऽस्मिन् सन्तीति-आर्डवो देश:.। अरडु नामक क्षत्रियविशेष इसमें रहते हैं यह-आर्डव देश । कक्षतवोऽस्मिन् सन्तीति-काक्षतवो देश: । कक्षतु नामक लोग इसमें हैं यह-काक्षतव देव। कर्कटेलवोऽस्मिन् सन्तीति-कार्कटेलवो देश: । ककटेलु नामक लोग इसमें हैं यह-काकटलव देश। सिद्धि-आरडव: । अरडु+जस्+अञ् । आरडो+अ। आरडव+सु । आरडवः । यहां प्रथमा-समर्थ, उकारान्त 'अरडु' शब्द से 'अस्मिन्' अर्थ में इस सूत्र से 'अञ्' प्रत्यय है। तद्धितेष्वचामादेः' (७।२।११७) से अंग को आदिवृद्धि, ओर्गुणः' (६।४।१४६) से अंग को गुण और 'एचोऽयवायाव:' (६।१।७५) से 'अव्' आदेश होता है। ऐसे कक्षतु और ककटेलु शब्दों से-काक्षतव:, कार्कटेलवः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003298
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages624
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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