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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् यहां प्रथम तृतीयासमर्थ 'अपिशलि' शब्द से 'इञश्च' (४।२।१११) से प्रोक्त अर्थ में 'अण्' प्रत्यय होता है। तद्धितेष्वचामादेः' (७।२।११७) से अंग को आदिवृद्धि और यस्येति च' (६।४।१४८) से अंग के इकार का लोप होता है। तत्पश्चात् प्रोक्त-प्रत्ययान्त 'आपिशल' शब्द से तदधीते तद्वेद' (४।२।५८) से यथाविहित 'अण्' प्रत्यय होता है। इस सूत्र से उस प्रत्यय का लुक् हो जाता है। प्रत्ययस्य लुक्
(७) सूत्राच्च कोपधात्।६४ । प०वि०-सूत्रात् ५।१ च अव्ययपदम्, कोपधात् ५।१। स०-क उपधायां यस्य स:-कोपधः, तस्मात्-कोपधात् (बहुव्रीहिः)। अनु०-तदधीते, तवेद, लुक् इति चानुवर्तते। अन्वय:-तत् सूत्राच्च कोपधाद् अधीते, वेद प्रत्ययस्य लुक् ।
अर्थ:-तद् इति द्वितीयासमर्थात् सूत्रवाचिन: ककारोपधात् प्रातिपदिकादधीते, वेद इत्येतयोरर्थयोर्विहितस्य प्रत्ययस्य लुम् भवति ।
उदा०-अष्टावध्याया: परिमाणमस्य-अष्टकम् (पाणिनीयं सूत्रम्) । अष्टकमधीयते विदुर्वा-अष्टका:। दशाध्याया: परिमाणमस्य-दशकम् (वैयाघ्रपदीयं सूत्रम्)। दशकमधीयते विदुर्वा-दशका: । त्रयोऽध्याया: परिमाणमस्य त्रिकम् (काशकृत्स्नं सूत्रम्) त्रिकमधीयते विदुर्वा-त्रिका: ।
आर्यभाषा: अर्थ-(तद्) द्वितीया-समर्थ (सूत्रात्) सूत्रवाची (कोपधात्) ककार-उपधावाले प्रातिप्रदिक से (च) भी (अधीते, वेद) पढ़ता है, जानता है अर्थ में विहित प्रत्यय का (लुक्) लोप होता है।
उदा०-अष्टावध्याया: परिमाणमस्य-अष्टकम् (पाणिनीयं सूत्रम्)। अष्टकमधीयते विदुर्वा-अष्टका: । आठ अध्याय हैं परिमाण इसका यह अष्टक (पाणिनीय सूत्र) । अष्टक को जो पढ़ते हैं वा जानते हैं वे-'अष्टकाः' । दशाध्याया: परिमाणमस्य-दशकम् (वैयाघ्रपदीयं सूत्रम्)। दशकमधीयते विदुर्वा-दशका: । दश अध्याय इसका परिमाण है यह दशक (वैयाघ्रपदीय सूत्र) दशक को जो पढ़ते हैं वा जानते हैं वे-'दशकाः'। त्रयोऽध्याया: परिमाणमस्य त्रिकम् (काशकृत्स्नं सूत्रम्) त्रिकमधीयते विदुर्वा-त्रिका: । तीन अध्याय हैं परिमाण इसके यह-त्रिक (काशकृत्स्न सूत्र) जो त्रिक को पढ़ते हैं वा जानते हैं वे-त्रिका:'।
सिद्धि-अष्टकाः। अष्ट+जस्+कन्। अष्ट+क। अष्टक+अण। अष्टक+० । अष्टक+जस् । अष्टकाः ।
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