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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् का शीघ्र करना। तैलपातोऽस्यां क्रियायां वर्तते सा-तैलम्पाता क्रिया। इस क्रिया में तैल का पतन होता है वह-तैलम्पाता क्रिया। तेल डालने के समान क्रिया का धीरे-धीरे करना।
सिद्धि-श्येनम्पाता। श्येन्+पत्+घञ्। श्येन+पात्+अ। श्येनम्पात+सु+। श्येन+मुम्+पात्+अ। श्येन+म्+पात्+अ। श्येनम्पात+टाप् । श्येनम्पाता+सु। श्येनम्पाता।
___ यहां प्रथम श्येन' उपपद पतलु गतौं (भ्वा०प०) धातु से 'भावे (३।३।१८) से भाव अर्थ में घञ्' प्रत्यय होता है। तत्पश्चात् प्रथमा-समर्थ घजन्त श्येनपात' शब्द से सप्तमी-विभक्ति के अर्थ में इस सूत्र से 'ज' प्रत्यय है। 'श्येनतिलस्य पाते अः' (६।३।८) से 'मुम्' आगम होता है। स्त्रीत्व-विवक्षा में 'अजाद्यतष्टाप्' (४।१।४) से 'टाप्' प्रत्यय है। ऐसे ही-तैलम्पाता क्रिया।
अधीते-वेद-अर्थप्रत्ययप्रकरणम् यथाविहितं प्रत्ययः
(१) तदधीते तद् वेद ।५८ । प०वि०-तद् २।१ अधीते क्रियापदम्, तद् २१ वेद क्रियापदम्। अन्वय:-तद् द्वितीयासमर्थाद् अधीते, वेद यथाविहितं प्रत्ययः।
अर्थ:-तद् इति द्वितीयासमर्थात् प्रातिपदिकाद् अधीते, वेद इत्येतयोरर्थयोर्यथाविहितं प्रत्ययो भवति ।
उदा०-व्याकरणमधीते वेद वा वैयाकरणः। छन्दोऽधीते वेद वा छान्दस: ।
आर्यभाषा: अर्थ-(तद्) द्वितीया-समर्थ प्रातिपदिक से (अधीते, वेद) पढ़ता है वा जानता है अर्थ में यथाविहित प्रत्यय होता है।
उदा०-व्याकरणमधीते वेद वा वैयाकरण: । जो व्याकरण पढ़ता है वा जानता है वह-वैयाकरण। छन्दोऽधीते वेद वा छान्दस: । जो छन्द:शास्त्र पढ़ता है वा जानता है वह-छान्दस।
सिद्धि-(१) वैयाकरण: । व्याकरण+अम्+अण् । ऐयाकरण+अ। वैयाकरण+सु । वैयाकरणः।
यहां द्वितीया-समर्थ व्याकरण' शब्द से अधीते, वेद इन दो अर्थो में इस सूत्र से यथाविहित प्रत्यय का विधान किया गया है। अत: प्राग्दीव्यतोऽण् (४।१।८३) से यथाविहित 'अण्' प्रत्यय है। न य्वाभ्यां पदान्ताभ्यां पूर्वी तु ताभ्यामैच् (७।३।३) से प्राप्त आदिवद्धि का प्रतिषेध और 'य' से पूर्व ए' का आगम होता है।
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