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________________ २१४ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् यहां षष्ठी-समर्थ 'भौरिकि' शब्द से विषय (दश) अर्थ में इस सूत्र से विधल्' प्रत्यय है। ऐसे ही-वैपायनविध., ऐषुकारिभक्तः, सारस्यायनभक्तः । . विशेष-(१) वैजयन्ती कोश (पृष्ठ ३७) के अनुसार बंगाल का समतट (दक्षिणी बंगाल) प्रदेश 'भौरिक' कहलाता था (पाणिनिकालीन भारतवर्ष, पृष्ठ ७६)। (२) कुरु जनपद में इसुकार या इषुकार नामक समृद्ध, सुन्दर और स्फीत नगर था (भण्डारकर लेखसूची, संख्या ३२९) उसी प्रकार हिसार का प्राचीन नाम ऐषुकारि' ज्ञात होता है (पाणिनिकालीन भारतवर्ष, पृष्ठ ८६) । अस्य (प्रगाथस्य) अर्थप्रत्ययविधि: यथाविहितं प्रत्ययः (१) सोऽस्यादिरितिच्छन्दसः प्रगाथेषु।५४ । प०वि०-स: १।१ अस्य ६१ आदि: ५।१ इति अव्ययपदम्, छन्दस: ६ १ प्रगाथेषु ७।३। अन्वयः-स प्रथमासमर्थाद् अस्य यथाविहितम्, यत् प्रथमासमर्थं छन्दस आदिरिति, यदस्येति प्रगाथश्चेत् । __ अर्थ:-स इति प्रथमासमर्थात् प्रातिपदिकाद् अस्य इति षष्ठ्यर्थे यथाविहितं प्रत्ययो भवति, यत् प्रथमासमर्थं छन्दस आदिरिति भवति, यच्च अस्य इति निर्दिष्टं प्रगाथश्चेत् स भवति । इतिकरणो विवक्षार्थः । प्रगाथशब्द: क्रियानिमित्तकः, क्वचिदेव मन्त्रविशेषे वर्तते । यत्र द्वे ऋचौ प्रग्रथनेन तिस्र: क्रियन्ते स प्रग्रथनात् प्रकर्षगानाद् वा प्रगाथ इति कथ्यते। उदा०-पङ्क्तिश्छन्द आदिरस्य प्रगाथस्य इति-पाङ्क्तः प्रगाथः । अनुष्टुप् छन्द आदिरस्य प्रगाथस्य इति-आनुष्टुभः प्रगाथ: । जगती छन्द आदिरस्य प्रगाथस्य इति-जागत: प्रगाथः । आर्यभाषा: अर्थ-(स:) प्रथमा-समर्थ प्रातिपदिक से (अस्य) षष्ठी विभक्ति के अर्थ में यथाविहित प्रत्यय होता है (छन्दस आदिः) जो प्रथमा विभक्ति से निर्दिष्ट पद है यदि वह छन्द का आदि हो (प्रगाथेषु) जो 'अस्य' षष्ठी-विभक्ति का अर्थ कहा है यदि वह प्रगाथ हो (इति) इतिकरण विवक्षा के लिये हैं, जहां ऐसी विवक्षा होती है, वहीं यह प्रत्यय विधि की जाती है, सर्वत्र नहीं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003298
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages624
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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