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चतुर्थाध्यायस्य द्वितीयः पादः
१८१ यहां सप्तमी-समर्थ 'क्षीर' शब्द से संस्कृत अर्थ में इस सूत्र से ढञ्' प्रत्यय है। 'आयनेयः' (७।१।२) से 'द' के स्थान में 'एय' आदेश होता है। स्त्रीत्व की विवक्षा में टिड्ढाणञ्' (४।१।१५) से डीप् प्रत्यय होता है।
अस्मिन् (पौर्णमासी) अर्थप्रत्ययविधिः अण्
(१) साऽस्मिन् पौर्णमासीति।२०। प०वि०-सा ११ अस्मिन् ७१ पौर्णमासी ११ इति अव्ययपदम् । अनु०-प्रातिपदिकात्, प्राग्दीव्यतोऽण् इति चानुवर्तते। अन्वयः-सा प्रातिपदिकाद् अस्मिन् प्राग्दीव्यतोऽण् पौर्णमासी इति ।
अर्थ:-सा इति प्रथमासमर्थात् प्रातिपदिकाद् अस्मिन्निति सप्तम्यर्थे प्राग्दीव्यतीयोऽण् प्रत्ययो भवति, यत् प्रथमासमर्थं पौर्णमासी इति चेत् सा भवति । इतिकरणं संज्ञार्थम्।
उदा०-पौषी पौर्णमासी अस्मिन्-पौषो मास:, पौषोऽर्धमास:, पौष: संवत्सरः।
आर्यभाषा: अर्थ-(सा) प्रथमा-समर्थ (प्रातिपदिकात्) प्रातिपदिक से (अस्मिन्) सप्तमी-विभक्ति के अर्थ में (प्राग्दीव्यत:) प्राग्दीव्यतीय (अण्) अण् प्रत्यय होता है (पौर्णमासी) जो प्रथमा-समर्थ है यदि वह पौर्णमासी (इति) संज्ञाविशेष हो।
__ उदा०-पौषी पौर्णमासी अस्मिन्-पौषो मास: । पौषी पौर्णमासी है इसमें इसलिये यह-पौष मास है। पौषोऽर्धमास: । पौष अर्धमास (पक्ष) है। पौष: संवत्सरः। पौष वर्ष है।
सिद्धि-पौषः । पौषी+सु+अण् । पौष्+अ। पौष+सु। पौषः। ___ यहां प्रथमा-समर्थ 'पौषी' शब्द से 'अस्मिन्' इस सप्तमी-विभक्ति के अर्थ में इस सूत्र से प्राग्दीव्यतीय 'अण्' प्रत्यय है। 'यस्येति च (६।४।१४८) से अंग के ईकार का लोप और तद्धितेष्वचामादेः' (७।२।११७) से पर्जन्यवत् सूत्रप्रवृत्ति होने से अंग को आदिवृद्धि होती है। यहां 'इतिकरण' संज्ञाविशेष के लिये है। अत: यह मास, अर्धमास और संवत्सर की संज्ञा है।
विशेष-पौर्णमासी-यहां 'पूर्णो मासो यस्यां तिथाविति-पूर्णमासः । पूर्णमासस्येयमिति-पौर्णमासी। जिस तिथि को मास पूर्ण होता है उस तिथि का नाम पौर्णमासी है। यहां इसी निपातन से अथवा तस्येदम्' (४।३।१२०) से 'अण्' प्रत्यय है। स्त्रीत्व-विवक्षा में 'टिड्डाणञ्' (४।१।१५) से ङीप् प्रत्यय होता है।
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