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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदा०-उदश्विति संस्कृतम्-औदश्वित्कम्, औदश्वितं वा। उदश्वित् लस्सी में गुणाधान करनेवाला-औदश्वित्क अथवा औदश्वित लवणभास्कर चूर्ण आदि।
सिद्धि-(१) औदश्वित्कम् । उदश्वित्+डि+ठक् । औदश्वित्+क । औदश्वितक+सु । औदोश्वित्कम्।
___ यहां सप्तमी-समर्थ उदश्वित्' शब्द से संस्कृत अर्थ में इस सूत्र से 'ठक' प्रत्यय है। इसुसुक्तान्तात् कः' (७।३।५१) से ' के स्थान में क्’ आदेश होता है; इक नहीं। किति च' (७।२।११८) से अंग को आदिवृद्धि होती है।
(२) औदश्वितम् । उदश्वित्+डि+अण् । औदश्वित्-अ। औदश्वित+सु। औदश्वितम्।
यहां सप्तमी-समर्थ उदश्वित्' शब्द से संस्कृत अर्थ में विकल्प पक्ष में प्रागदीव्यतोऽण (४।१।८१) से प्राग्दीव्यतीय 'अण्' प्रत्यय होता है। तद्धितेष्वचामादेः' (७ ।२।११७) से अंग को आदिवृद्धि होती है।
विशेष-दधि का अर्थ दही, तक्र का अर्थ मथी हुई दही (अध-बिलोई दही) और उदश्वित् का अर्थ उद-जल से श्वित् बढाई हुई दही लस्सी अर्थ होता है। ढञ्
(५) क्षीराड्ढञ्।१६। प०वि०-क्षीरात् ५।१ ढञ् १।१। अनु०-तत्र, संस्कृतम्, भक्षा इति चानुवर्तते। अन्वयः-तत्र क्षीरात् संस्कृतं ढञ् भक्षाः ।
अर्थ:-तत्र-इति सप्तमीसमर्थात् क्षीरात् प्रातिपदिकात् संस्कृतमित्यस्मिन्नर्थे ढञ् प्रत्ययो भवति, यत् संस्कृतं भक्षाश्चेत् ता भवन्ति।
उदा०-क्षीरे संस्कृतम्-क्षरेयी यवागूः।
आर्यभाषा: अर्थ-(तत्र) सप्तमी-समर्थ (क्षीरात्) क्षीर प्रातिपदिक से (संस्कृतम्) पकाया हुआ अर्थ में (ढञ्) ढञ् प्रत्यय होता है (भक्षाः) जो पकाया गया हो यदि वह भक्षा भोजन हो।
उदा०-क्षीरे संस्कृतम्-क्षरेयी यवागूः । क्षीर-दूध में पकाई हुई-क्षरेयी यवागू। यवागू जौ अथवा चावल का मांड।
सिद्धि-क्षरेयी। क्षीर+डि+ढञ् । क्षैर्+एय। क्षरेय। क्षरेय+डीप् । क्षैरेयी+सु। झरेयी।
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