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________________ १७५ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् यहां सप्तमी-समर्थ 'भ्राष्ट्र' शब्द से संस्कृत (भक्ष) पकाने अर्थ में इस सूत्र से प्राग्दीव्यतीय अण्' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है। ऐसे ही-कालशाः, कौम्भाः।। विशेष-भक्षा:' यहां 'भक्ष अदने' (भ्वा०प०) धातु से 'गुरोश्च हलः' (३।३।१०३) से भाव अर्थ में स्त्रीलिङ्ग में 'अ' प्रत्यय है। भक्षा खाना। यत् (२) शूलोखाद् यत्।१६। प०वि०-शूलोखात् ५।१ यत् १।१। स०-शूलं च उखा च एतयो: समाहार:-शूलोखम्, तस्मात्-शूलोखात् (समाहारद्वन्द्वः)। अनु०-तत्र, संस्कृतम्, भक्षा इति चानुवर्तते। अन्वय:-तत्र शूलोखात् संस्कृतं यद् भक्षाः । अर्थ:-तत्र-इति सप्तमी-समर्थाभ्यां शूलोखाभ्यां प्रातिपदिकाभ्यां संस्कृतमित्यस्मिन्नर्थे यत् प्रत्ययो भवति, यत् संस्कृतं भक्षाश्चेत् ता भवन्ति। उदा०-(शूलम्) शूले संस्कृतम्-शूल्यं मांसम् । (उखा) उखायां संस्कृतम्-उख्यं क्षीरम्। आर्यभाषा: अर्थ-(तत्र) सप्तमी समर्थ (शूलोखात्) शूल और उखा प्रातिपदिक से (संस्कृतम्) पकाये हुये अर्थ में (यत्) यत् प्रत्यय होता है (भक्षा:) जो पकाया हो वह यदि भक्षा भोजन हो। उदा०-(शूलम्) शूले संस्कृतम्-शूल्यं मांसम् । शूल में पकाया हुआ-शूल्य मांस। शूल-कबाब भूनने की लोहे की सींक, जिस पर लपेटकर कबाब (मांस) भूना जाता है। (उखा) उखायां संस्कृतम्-उख्यं क्षीरम् । उखा=बटलोई (डेगची) में उबाला हुआ दूध। सिद्धि-शूल्यम् । शूल+डि+यत् । शूल्+य। शूल्य+सु। शूल्यम्। यहां सप्तमी-समर्थ 'शूल' शब्द से संस्कृत अर्थ में इस सूत्र से यत्' प्रत्यय है। ऐसे ही-उख्यम्। ठक् (३) दध्नष्टक।१७। प०वि०-दन: ५।१ ठक् १।१। अनु०-तत्र, संस्कृतम्, भक्षा इति चानुवर्तते। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003298
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages624
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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