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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम्
उदा०- गार्ग्यस्य युवापत्यम् - गार्ग्यायणः कनीयान् भ्राता, गर्ग्यश्च ज्यायान् भ्राता भवति ।
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आर्यभाषाः अर्थ-(ज्यायसि) बड़ा (भ्रातरि ) भाई (जीवति) जीवित रहने पर (च) भी (पौत्रप्रभृतेः) पौत्र आदि का जो (अपत्यम्) पुत्र है उसकी (युवा) युवासंज्ञा होती है।
उदा०-गार्ग्यस्य युवापत्यम्- गार्ग्यायणः कनीयान् भ्राता, गर्ग्यश्च ज्यायान् भ्राता भवति । गार्ग्य का पुत्र- छोटा भाई 'गार्ग्यायण' और बड़ा भाई 'गार्ग्य' कहाता है।
विशेष - गार्ग्य के दो पुत्र हैं। एक का नाम देवदत्त और दूसरे का नाम यज्ञदत्त है। पिता की मृत्यु हो जाने पर और बड़े भाई देवदत्त के जीवित रहने पर छोटे भाई यज्ञदत्त की युवा संज्ञा होती है, अत: वह 'गार्ग्यायण' कहाता है और बड़े भाई की गोत्रसंज्ञा होने से वह 'गार्ग्य' कहाता है। भारतीय संस्कृति में बड़ा भाई पिता के तुल्य माना जाता है। अतः बड़े भाई के जीवित रहते छोटा भाई 'गोत्र' पद प्राप्त नहीं करता है, उसकी युवासंज्ञा ही होती है। वह अभी युवा (लड़का ) ही है।
युव-संज्ञा
(३) वाऽन्यस्मिन् सपिण्डे स्थविरतरे जीवति । १६५ ।
प०वि० - वा अव्ययपदम् अन्यस्मिन् ७ ११ सपिण्डे ७ । १ स्थविरतरे ७।१ जीवति ७ । १ । सप्तमपुरुषावधयः सपिण्डाः स्मर्यन्ते । अनु०-अपत्यम्, पौत्रप्रभृति, जीवति, भ्रातरि, युवा इति चानुवर्तते । अन्वयः-भ्रातरि अन्यस्मिन् सपिण्डे स्थविरतरे जीवति, पौत्रप्रभृतेरपत्यं जीवति वा युवा ।
अर्थः-भ्रातुरन्यस्मिन् सपिण्डे स्थविरतरे जीवति सति पौत्रप्रभृतेर्यदपत्यं तद् जीवदेव विकल्पेन युवसंज्ञकं भवति ।
उदा०- गर्गस्यापत्यम् - गार्ग्यायणः, गार्यो वा । वत्सस्यापत्यम्वात्स्यायनो वात्स्यो वा ।
आर्यभाषाः अर्थ-(भ्रातरि) भाई से (अन्यस्मिन्) अन्य (सपिण्डे) सात पीढी के (स्थविरतरे ) पद वा आयु से वृद्ध पुरुष के (जीवति) जीवित रहने पर (पौत्रप्रभृतेः ) पौत्र आदि के (अपत्यम्) सन्तान की (जीवति) जीवित अवस्था में (वा) विकल्प से (युवा) युवा संज्ञा होती है.
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