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________________ ११६ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदाळ-विकर्णस्यापत्यम्-वैकर्णेय: काश्यप: । कुषीतकस्यापत्यम्कौषीतकेय: काश्यपः। आर्यभाषा8 अर्थ-(तस्य) षष्ठी-समर्थ (विकर्णकुषीतकात्) विकर्ण और कुषीतक प्रातिपदिकों से (अपत्यम्) अपत्य अर्थ में (ढक्) ढक् प्रत्यय होता है (काश्यपे) यदि वहां काश्यप अर्थ अभिधेय हो। उदा०-(विकर्ण) विकर्णस्यापत्यम-वैकर्णेय: काश्यपः । विकर्ण ऋषि का पत्र-वैकर्णेय काश्यप। (कुषीतक) कुषीतकस्यापत्यम्-कौषीतकेय: काश्यपः । कुषीतक ऋषि का पुत्र-कौषीतकेय काश्यप। विकर्ण और कुषीतक काश्यप वंश के ऋषि हैं। सिद्धि-वैकर्णेयः । विकर्ण+डस्+ढक्। विकर्ण+एय ।वैकर्णेय+सु। वैकर्णेयः । यहां षष्ठी-समर्थ विकर्ण शब्द से अपत्य अर्थ में तथा काश्यप' अर्थ अभिधेय में इस सूत्र से 'ढक्' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है। ऐसे ही-कौषीतकेयः । ढक् (६) ध्रुवो वुक् च।१२५ । प०वि०-भ्रुव: ५।१ वुक् ११ च अव्ययपदम् । अनु०-तस्य, अपत्यम्, ढक् इति चानुवर्तते। अन्वय:-तस्य ध्रुवोऽपत्यं ढक् वुक् च। अर्थ:-तस्य इति षष्ठीसमर्थाद् भ्रूशब्दात् प्रातिपदिकाद् अपत्यमित्यस्मिन्नर्थे ढक् प्रत्ययो भवति, वुक् चागमो भवति । उदा०-ध्रुवोऽपत्यम्-ध्रौवेयः। आर्यभाषा: अर्थ-(तस्य) षष्ठी-समर्थ (ध्रुव:) धू शब्द प्रातिपदिक से (अपत्यम्) अपत्य अर्थ में (ढक्) ढक् प्रत्यय होता है (च) और (वुक्) भ्रू शब्द को वुक् आगम होता है। उदा०-ध्रुवोऽपत्यम्-श्रौवेय: । धू ऋषि का पुत्र-भ्रौवेय। सिद्धि-भ्रौवेय:। भ्रू+डस्+ढक्। भ्रूवुक्+एय। ध्रौव्+एय। ध्रौवेय+सु। श्रौवेयः। यहां षष्ठी-समर्थ 'भ्रू' शब्द से अपत्य अर्थ में इस सूत्र से ढक्' प्रत्यय और भ्रू शब्द को 'वुक्’ आगम होता है। शेष कार्य पूर्ववत् है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003298
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages624
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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