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________________ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् आर्यभाषाः अर्थ - जो इससे आगे कहेंगे उन प्रत्ययों की ( तद्धिता: ) तद्धित संज्ञा होती है। यह पञ्चम अध्याय की समाप्ति पर्यन्त तद्धित संज्ञा का अधिकार है। ७२. तद्धित संज्ञा का यह फल है कि कृत्तद्धितसमासाश्च' (१।२।४६ ) से तद्धित प्रत्ययान्त शब्दों की प्रातिपदिक संज्ञा होती है और उनसे 'स्वौजस् ० ' ( ४1१/२ ) से सु-आदि प्रत्ययों की उत्पत्ति होती है। तिः प०वि० (१) यूनस्तिः । ७७ । ० - यूनः ५ ।१ ति: १ । १ । अन्वयः - यूनः प्रातिपदिकात् स्त्रियां तिः । अर्थ:- युवन् - शब्दात् प्रातिपदिकात् स्त्रियां तिः प्रत्ययो भवति, स च तद्धितसंज्ञको भवति । उदा० -युवतिः । आर्यभाषाः अर्थ- ( यूनः ) युवन् शब्द प्रातिपदिक से (स्त्रियाम्) स्त्रीलिङ्ग में ( ति : ) ति प्रत्यय होता है और उसकी (तद्धिता:) तद्धित संज्ञा होती है । उदा०० - युवतिः । युवावस्थावाली स्त्री । सिद्धि-युवति: । युवन्+ति। यहां युवन्' शब्द से स्त्रीलिङ्ग में इस सूत्र से 'ति' प्रत्यय है। 'ति' प्रत्यय के परे होने पर 'स्वादिष्वसर्वनामस्थाने (१।४।१७ ) से 'युवन्' शब्द की पदसंज्ञा होती है और 'नलोपः प्रातिपदिकान्तस्य' (८/२/७ ) से 'युवन्' के 'न्' का लोप होता है। युवति शब्द में 'ति' प्रत्यय की तद्धित संज्ञा होने से कृत्तद्धितसमासाश्च' से युवति शब्द की प्रातिपदिक संज्ञा होती है और तत्पश्चात् उससे 'स्वौजस् ० ' (४|१|२) से 'सु' आदि प्रत्ययों की उत्पत्ति होती है। ष्यङ्-आदेशः (१) अणिञोरनार्षयोर्गुरूपोत्तमयोः ष्यङ् गोत्रे ।७८ । प०वि० - अण्- इञोः ६ । २ अनार्षयोः ६ । २ गुरु-उपोत्तमयोः ६ । २ ष्यङ् १ । १ । गोत्रे ७ । १ । सo - अण् च इञ् च तौ-अणित्रौ तयोः अणिञोः (इतरेतरयोगद्वन्द्वः) । ऋषिणा प्रोक्त आर्ष:, नार्ष:-अनार्ष: । अनार्षश्च अनार्षश्च तौ - अनार्षी, तयो:-अनार्षयोः (नञगर्भित एकशेषद्वन्द्वः) । त्रिप्रभृतीनामन्त्यमक्षरमुत्तमम्, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003298
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages624
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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