SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् अन्वयः-तत्रासरूपः प्रत्ययो वाऽस्त्रियाम् । अर्थः- तत्र = तस्मिन् धात्वधिकारेऽसरूपोऽपवादप्रत्ययो विकल्पेन बाधको भवति, स्त्री-अधिकारविहितं प्रत्ययं वर्जयित्वा । τε 1 'ण्वुल्तृचौ' (३।१।१३३) इति ण्वुल् - तृचौ प्रत्ययावुत्सर्गौ वर्तेते 'इगुपधज्ञाप्रीकिरः कः' (३ । १ । १३५ ) इति कः प्रत्ययस्तयोरपवादः । सोऽसरूपत्वाद् विकल्पेन बाधको भवति । विकल्पेन सोऽपि भवतीत्यर्थः । उदा०- (ण्वुल् ) विक्षेपकः । ( तच्) विक्षेप्ता । (क) विक्षिपः । आर्यभाषा - अर्थ - (तत्र) उस धातु - अधिकार में (असरूपः) असमानरूपवाला अपवादरूप प्रत्यय (वा) विकल्प से बाधक होता है (अस्त्रियाम्) स्त्री-अधिकार में विहित प्रत्यय को छोड़कर । 'वुल्तृचौ' (३।१।१३३) से धातुमात्र से ण्वुल् और तृच् प्रत्यय का उत्सर्ग रूप में विधान किया गया है। 'इगुपधज्ञाप्रीकिरः कः' ( ३ । १ । १३५ ) से इगुपध धातु से उन दोनों का अपवाद 'क' प्रत्यय है । वह असरूप होने से उन दोनों का विकल्प से बाधक होता है अर्थात् विकल्प से वह भी हो जाता है। उदा०-विक्षेपकः । यहां ण्वुल् प्रत्यय है। विक्षेप्ता। यहां तृच् प्रत्यय है। विक्षिपः । यहां 'क' प्रत्यय है । सिद्धि - इनकी सिद्धि यथास्थान दर्शायी जायेगी। अथ कृत्यप्रत्ययप्रकरणम् (१) कृत्याः । ६५ । प०वि० - कृत्या: १ । ३ । अनु० - तत्र इत्यनुवर्तते । अर्थः-तत्र=तस्मिन् धात्वधिकारे 'प्राङ् ण्वुल:' ( ३।१।१३३) ये प्रत्ययास्ते कृत्यसंज्ञका भवन्ति, इत्यधिकारोऽयम्। उदा०-यथास्थानमुदाहरिष्यते । आर्यभाषा-अर्थ- (तत्र) उस धातु-अधिकार में 'वुल्तृचौं (३ ।१ ।१३३) से पहले जो प्रत्यय कहे गये हैं उनकी (कृत्याः) कृत्य संज्ञा होती है, यह कृत्य संज्ञा का अधिकार है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003297
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy