________________
५४०
पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् (२) पचेताम् । पच्+लोट् । पच्+शप्+आताम् । पच्+अ+आ ते। पच्+अ+आताम् । पच+अ+इय् ताम्। पच+अ+इ ताम्। पचेताम् ।
यहां लोट्' प्रत्यय के लादेश 'आताम्' प्रत्यय के 'टि' भाग को पूर्ववत् 'ए' आदेश और उसे इस सूत्र से 'आम्' आदेश होता है। 'आतो डित: (७।२।८) आताम्' प्रत्यय के 'आ' को 'इय्' आदेश, लोपो व्योलि' (६।१।६४) से 'य' का लोप और 'आद्गुणः' (६।१।८४) से गुण रूप (अ+इ=ए) एकादेश होता है।
(३) पचन्ताम् । यहां 'लोट्' प्रत्यय के लादेश 'झ' प्रत्यय के स्थान में प्रथम झोऽन्तः' (७।१।२) से 'अन्त' आदेश और उसके 'टि' भाग को पूर्ववत् 'ए' आदेश होता है। इस सूत्र से उस 'ए' को 'आम्' आदेश होता है। व-अमावादेशौ
. (७) सवाभ्यां वामौ ।६१। प०वि०-सवाभ्याम् ५।२ व-अमौ १।२।
स०-सश्च वश्च तौ-सवौ, ताभ्याम्-सवाभ्याम् (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)। वश्च मश्च तौ-वामौ (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)।
अनु०-लस्य, लोट, एत इति चानुवर्तते। अन्वय:-धातोर्लोटो लस्य सवाभ्याम् एतो वामौ।
अर्थ:-धातो: परस्य लोट्सम्बन्धिनो लादेशस्य सकारवकाराभ्यामुत्तरस्य एकारस्य स्थाने यथासंख्यं व-अमावादेशौ भवत: ।
उदा०-(व:) त्वं पचस्व । (अम्) यूयं पचध्वम् ।
आर्यभाषा-अर्थ-(धातो:) धातु से परे (लोट:) लोट्सम्बन्धी (लस्य) लादेश के (सवाभ्याम्) सकार और वकार से परे (एत:) एकार के स्थान में यथासंख्य (व-अमौ) व और अम् आदेश होता है।
उदा०-(व) त्वं पचस्व । तू पका। (अम्) यूयं पचध्वम् । तुम सब पकाओ।
सिद्धि-(१) पचस्व । पच्+लोट् । पच्+शप्+थास् । पच्+अ+से। पच्+अ+स्व । पचस्व।
यहां लोट्' प्रत्यय के लादेश 'थास्' प्रत्यय के स्थान में प्रथम 'थास: से (३।४।८०) से से' आदेश होता है। उस से' आदेश के सकार से परवर्ती एकार के स्थान में इस सूत्र से 'व' आदेश होता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org