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________________ तृतीयाध्यायस्य चतुर्थः पादः ५३६ अर्थ:-धातो: परस्य लोट्सम्बन्धिनो लादेशस्य मि-प्रत्ययस्य स्थाने नि-आदेशो भवति। उदा०-अहं पचानि। अहं पठानि। आर्यभाषा-अर्थ-(धातो:) धातु से परे (लोट:) लोट् सम्बन्धी (लस्य) ल-आदेश (मे:) मिप् प्रत्यय के स्थान में (नि:) नि-आदेश होता है। उदा०-अहं पचानि । मैं पकाऊं। अहं पठानि । मैं पढूं। सिद्धि-(१) पचानि । पच्+लोट् । पच्+शप्+मिप् । पच्+अ+नि। पच्+आ+नि। पचानि। ___ यहां पूर्वोक्त ‘पच्' धातु से पूर्ववत् लोट्' प्रत्यय और उसके ल-आदेश 'मिप्' प्रत्यय के स्थान में इस सत्र से 'नि' आदेश होता है। कर्तरि शप' (३।१।६८) से 'शप्' विकरण प्रत्यय और 'अतो दीर्घो यत्रि' (७।३।१०१) से दीर्घत्व होता है। (२) पठानि । 'पठ व्यक्तायां वाचिं' (भ्वा०प०) पूर्ववत् । आम्-आदेशः (६) आमेतः ।६०। प०वि०-आम् ११ एत: ६।१। अनु०-लस्य, लोट इति चानुवर्तते । अन्वय:-धातोर्लोटो लस्य एत आम् । अर्थ:-धातो: परस्य लोट्सम्बन्धिनो लादेशस्य एकारस्य स्थाने आम्-आदेशो भवति। उदा०-स पचताम्। तौ पचेताम् । ते पचन्ताम्, इत्यादिकम् । आर्यभाषा-अर्थ-(धातो:) धातु से परे (लोट:) लोट्सम्बन्धी (लस्य) लादेश के (एत:) एकार के स्थान में (आम्) आम् आदेश होता है। उदा०-स पचताम् । वह पकावे। तौ पचेताम् । वे दोनों पकावें । ते पचन्ताम् । वे सब पकावें। सिद्धि-(१) पचताम् । पच्+लोट् । पच+शप्+त। पच्+अ+ते। पच्+अ+ताम्। पचताम्। यहां पच्' धातु से परे पूर्ववत् 'लोट्' प्रत्यय है और उसके लादेश त' प्रत्यय के टि' भाग को 'टित आत्मनेपदानां टेरे' (३।४।७९) से 'ए' आदेश होता है। उस 'ए' आदेश को इस सूत्र से 'आम्' आदेश होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003297
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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