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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम्
सिद्धि - (१) नानाकृत्य । यहां नाना शब्द उपपद होने पर 'कृ' धातु से क्त्वा प्रत्यय है। शेष कार्य 'नीचैः कृत्य' (३1३1५९) के समान है। असमास पक्ष में नाना कृत्वा ।
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(२) नानाकारम् । यहां नाना शब्द उपपद होने पर 'कृ' धातु से 'णमुल्' प्रत्यय है। शेष कार्य 'नीचैःकारम्' ( ३।३।५९ ) के समान है। असमास पक्ष में- 'नाना कारम्' पृथक्-पृथक् पद और पृथक्-पृथक् स्वर होता है। ऐसे ही अन्य प्रयोगों की भी सिद्धि समझ
लेवें ।
(३) नाना। यहां 'विनञ्भ्यां नानाञ न सह' (५ 1२/२७ ) से नञ् शब्द से नाञ् प्रत्यय है।
(४) विना । यहां पूर्वोक्त सूत्र से वि' शब्द से 'ना' प्रत्यय है ।
(५) द्विधा । यहां द्वि' शब्द से 'संख्याया विधार्थे धा' (५।३।४२ ) से 'धा' प्रत्यय है।
(६) द्वैधम् | यहां द्वि' शब्द से द्वित्र्योश्च धमुञ्' (५/३/४५ ) से 'धमुञ्' प्रत्यय है।
च्वि-अर्थ- 'अभूततद्भावे कृभ्वस्तियोगे सम्पद्यकर्तरि च्चि: ' (५/४/५0) से च्वि-प्रत्यय अभूततद्भाव अर्थ में होता है।
क्त्वा+णमुल् -
प०वि० - तूष्णीमि ७ । १ भुव: ५ । १ । अनु०- क्त्वाणमुलावित्यनुवर्तते । अन्वयः - तूष्णीमि भुवो धातोर्णमुल् ।
अर्थ:- तूष्णीम्-शब्दे उपपदे भू-धातो: परौ क्त्वाणमुलौ प्रत्ययौ
भवतः ।
(५) तूष्णीमि भुवः । ६३ ।
उदा०- ( क्त्वा) तूष्णींभूय गतः । तूष्णीं भूत्वा गतः । ( णमुल् ) तूष्णींभावं गतः । तूष्णीं भावं गतः ।
आर्यभाषा-अर्थ- (तूष्णीमि) तूष्णीम् शब्द उपपद होने पर (भुवः) भू (धातोः) धातु से परे ( क्त्वाणमुलौ ) क्त्वा और णमुल् प्रत्यय होते हैं ।
उदा०
- ( क्त्वा) तूष्णींभूय गतः । तूष्णीं भूत्वा गतः । ( णमुल् ) तूष्णींभावं गत: । तूष्णीं भावं गतः । चुप होकर चला गया।
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