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________________ ५०४ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदा०-(क्त्वा) ब्राह्मण ! पुत्रस्ते जात:, किं तर्हि वृषल ! नीचैः कृत्याचष्टे, नीचैः कृत्वाऽऽचष्टे (णमुल्) नीचैकारमाचष्टे, नीचैः कारमाचष्टे। उच्चै म प्रियमाख्येयम्। (क्त्वा) ब्राह्मण ! कन्या ते गर्भिणी, किं तर्हि वृषल ! उच्चैःकृत्याचष्टे, उच्चैः कृत्वाचष्टे, (णमुल्) उच्चै:कारमाचष्टे। उच्चैः कारमाचष्टे। नीचैर्नामाप्रियमाख्येयम् । आर्यभाषा-अर्थ-(अव्यये) अव्यय शब्द उपपद होने पर (कृजः) कृञ् (धातोः) धातु से परे (क्त्वाणमुलौ) क्त्वा और णमुल् प्रत्यय होते हैं (अयथाभिप्रेताख्याने) यदि वहां अयथाभिप्रेत बात का कथन हो। उदा०-(क्त्वा) ब्राह्मण ! पुत्रस्ते जात:, किं तर्हि वृषल ! नीचैःकृत्याचष्टे । नीचैः कृत्वाचष्टे । (णमुल) नीचैः कारमाचष्टे । नीचैः कारमाचष्टे । हे ब्राह्मण ! तेरे घर एक पुत्र उत्पन्न हुआ है, तो हे नीच ! तू इस बात को नीचे स्वर में क्यों कहता है। प्रिय बात तो ऊंचे स्वर में कहनी चाहिये। (क्त्वा) ब्राह्मण ! कन्या ते गर्भिणी, किं तर्हि वृषल ! उच्चैःकृत्याचष्टे, उच्चैः कृत्वाचष्टे, उच्चै:कारमाचष्टे, उच्चैः कारमाचष्टे । हे ब्राह्मण ! तेरी कन्या गर्भिणी है, हे नीच ! तू इस बात को ऊंचे स्वर में क्यों कहता है ? अप्रिय बात तो नीचे स्वर में कहनी चाहिये। सिद्धि-(१) नीचैःकृत्य । नीचैः+कृ+त्वा। नीचैः+कृ+ल्यप् । नीचैः+कृ+तुक्+य । नीचैःकृत्य+सु । नीचैःकृत्य। यहां अव्यय नीचैः शब्द उपपद होने पर अयथाभिप्रेत के कथन में 'डुकृञ् करणे (तनाउ०) धातु से इस सूत्र से क्त्वा' प्रत्यय है। तृतीयाप्रभृतीन्यन्यतरस्याम् (२।२।२१) से विकल्प उपपद समास होता है। समास पक्ष में 'समासेऽनझपूर्वे क्त्वो ल्यप् (७।१।३७) से क्त्वा प्रत्यय को 'ल्यप्’ आदेश और 'हस्वस्य पिति कृति तुक्' (६।१।७१) से 'तुक्' आगम होता है। असमास पक्ष में-नीचैः कृत्वा । (२) नीचै:कारम् । पूर्वोक्त कञ्' धातु से णमुल्' प्रत्यय है। प्रत्यय के णित्' होने से अचो णिति (७।२।११५) से 'कृ' धातु को वृद्धि होती है। समासपक्ष में एक पद और एक स्वर होता है। असमास पक्ष में पृथक् पद और पृथक् स्वर होता है-नीचैः कारम् । ऐसे ही-उच्चैःकृत्य इत्यादि। क्त्वा+णमुल् (अपवर्गे) (२) तिर्यच्यपवर्गे।६०। प०वि०-तिर्यचि ७१ अपवर्गे ७१। अनु०-कृञः क्त्वाणमुलौ इति चानुवर्तते। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003297
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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