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________________ ४६० पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् आर्यभाषा-अर्थ-(कत्रों:) कर्तावाची (जीव-पुरुषयोः) जीव और पुरुष शब्द उपपद होने पर यथासंख्य (नशिवहो:) नश् और वह (धातो:) धातु से परे (णमुल्) णमुल् प्रत्यय होता है। उदा०- (जीव) जीवनाशं नश्यति । जीव (प्राणी) नष्ट होता है। (पुरुष) पुरुषवाहं वहति । पुरुष सेवक बनकर भार वहन करता है। सिद्धि-(१) जीवनाशम् । जीव+सु। नश्+णमुल् । जीव+नाश्+अम् । जीवनाशम्+सु। जीवनाशम्। । यहां जीव' कर्ता उपपद होने पर णश अदर्शने' (दि०प०) धातु से इस सूत्र से णमुल्' प्रत्यय है। प्रत्यय के णित् होने से 'अत उपधायाः' (७।२।११६) से नश्' धातु को उपधावृद्धि होती है। (२) पुरुषवाहम् । यहां 'पुरुष' कर्ता उपपद होने पर वह प्रापणे' (भ्वा०प०) धातु से इस सूत्र से णमुल्' प्रत्यय है। पूर्ववत् उपधावृद्धि होती है। णमुल् (१८) ऊर्ध्वं शुषिपूरोः ।४४। प०वि०-ऊर्चे ७१ शुषि-पूरो: ६।२ (पञ्चम्यर्थे)। स०-शुषिश्च पूर् च तौ-शुषिपूरौ, तयो:-शुषिपूरो: (इतरेतरयोगद्वन्द्वः)। अनु०-णमुल्, कों: इति चानुवर्तते। अर्थ:-कर्तृवाचिनि ऊर्ध्व-शब्दे उपपदे शुषिपूरिभ्यां धातुभ्यां परो णमुल् प्रत्ययो भवति। उदा०- (शुषि:) ऊर्ध्वशोषं शुष्यति। (पूर्) ऊर्ध्वपूरं पूर्यते। आर्यभाषा-अर्थ-(कों:) कर्तावाची (ऊये) ऊर्ध्व शब्द उपपद होने पर (शुषिपूरो:) शुष और पूर् (धातो:) धातु से परे (णमुल्) णमुल् प्रत्यय होता है। उदा०-(शुषि) ऊर्ध्वशोषं शुष्यति । ऊपरवाला भाग सूखता है। (पूर) ऊर्ध्वपूरं पूर्यते। ऊपरवाला भाग भरता है। सिद्धि-(१) ऊर्ध्वशोषम् । ऊर्ध्व+सु+शुष्+णमुल् । ऊर्ध्व+शोण्+अम् । ऊर्ध्वशोषम्+सु। ऊर्ध्वशोषम्।। यहां ऊर्ध्व' कर्ता उपपद होने पर 'शुषि शोषणे' (दि०प०) धातु से इस सूत्र से 'णमुल्' प्रत्यय है। 'पुगन्तलघूपधस्य च' (७।३।८६) से 'शुष्' धातु को लघूपध गुण होता है। (२) ऊर्ध्वपूरम् । 'पूरी आप्यायने (दि०आ०) धातु से पूर्ववत् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003297
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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