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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् अर्थ:-करणे कारके उपपदे हन्-धातो: परो णमुल् प्रत्ययो भवति। उदा०-पाणिघातं वेदिं हन्ति। पादघातं भूमिं हन्ति ।
आर्यभाषा-अर्थ-(करणे) करण कारक उपपद होने पर (हन:) हन् (धातो:) धातु से परे (णमुल्) णमुल् प्रत्यय होता है।
उदा०-पाणिघातं वेदिं हन्ति । हाथ से वेदि को कूटता है। पादघातं भूमि हन्ति । पैर से भूमि को कूटता है।
सिद्धि-(१) पाणिघातम् । यहां पाणिकरण उपपद होने पर हन् हिंसागत्योः' (अदा०प०) धातु से इस सूत्र से णमुल्' प्रत्यय है। शेष कार्य समूलघातम्' (३।४।३६) के समान है।
(२) पादघातम् । यहां पादकरण उपपद होने पर पूर्वोक्त हन्' धातु से 'णमुल्' प्रत्यय है। शेष पूर्ववत् है। णमुल्
(१२) स्नेहने पिषः ।३८। प०वि०-स्नेहने ७।१ पिष: ५।१। अनु०-णमुल, करणे इति चानुवर्तते । अन्वय:-स्नेहने पिबो धातोर्णमुल्।
अर्थ:-स्नेहनवाचिनि करणे कारके उपपदे पिष्-धातो: परो णमुल् प्रत्ययो भवति। स्नेहने' इत्यत्रार्थग्रहणं क्रियते।
... उदा०-उदपेषं पिनष्टि । उदकेन पिनष्टीत्यर्थः । तैलपेषं पिनष्टि । तैलेन पिनष्टीत्यर्थः।
आर्यभाषा-अर्थ-(स्नेहने) स्नेहन द्रववाची (करणे) करण कारक उपपद होने पर (पिष:) पिण् (धातो:) धातु से परे (णमुल्) णमुल् प्रत्यय होता है।
___ उदा०-उदपेषं पिनष्टि। किसी द्रव्य को जल से पीसता है। तैलपेषं पिनष्टि । किसी द्रव्य को तैल से पीसता है।
सिद्धि-(१) उदपेषम् । यहां उदक करण उपपद होने पर पिष्लू संचूर्णने' (रुधा०प०) धातु से इस सूत्र से ‘णमुल्' प्रत्यय है। प्रत्यय के णित् होने से पूर्ववत् उपधावृद्धि होती है। पिपंवासवाहनधिषु च (६।३।५८) से उदक के स्थान में उद-आदेश होता है।
(२) तैलपेषम् । पूर्ववत् ।
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