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तृतीयाध्यायस्य धतुर्थः पादः सिद्धि-(१) चेलक्नोपम् । चेल+अम्+क्नूय+णिच्+णमुत्। चेल+क्नूय+पुक्+ इ+आम्। चेल+क्नूप+अम्। चेल+क्नोप्+अम्। चेलक्नोपम्+सु। चेलक्नोपम्।
यहां 'चेल' कर्म उपपद होने पर णिजन्त 'क्नूयी शब्द उन्दे च' (भ्वा०आ०) धातु से इस सूत्र से णमुल्' प्रत्यय है। क्नूयी' धातु से हतुमति च' (३।१।२६) से णिच्' प्रत्यय, 'अर्तिी०' (७।३ ॥३६) से धातु को पुक्’ आगम, लोपो व्योर्वलि' (६।१।६५) से धातु के 'य’ का लोप और 'पुगन्तलघूपधस्य च' (७।३।८६) से पुगन्त 'क्नूप्' धातु को गुण होता है।
(२) वस्त्रक्नोपम्/वसनक्नोपम् । पूर्ववत् । णमुल्
(८) निमूलसमूलयोः कषः ।३४। प०वि०-निमूल-समूलयोः ७।२ कष: ५।१ ।
स०-निमूलं च समूलं च ते-निमूलसमूले, तयो:-निमूलसमूलयो: (इतरेतरयोगद्वन्द्वः)।
अनु०-णमुल् कर्मणि इति चानुवर्तते । अन्वय:-निमूलसमूलयो: कर्मणो कषो धातोर्णमुल् ।
अर्थ:-निमूलसमूलयो: कर्मणोरुपपदयो: कष्-धातो: परो णमुल् प्रत्ययो भवति।
उदा०-(निमूलम्) निमूलकाषं कषति। (समूलम्) समूलकाषं कषति । निगतं मूलं यस्य तत्-निमूलम्। मूलेन सहेति समूलम् ।
आर्यभाषा-अर्थ-(निमूलसमूलयोः) निमूल और समूल शब्द (कर्माण) कर्म उपपद होने पर (कषः) कष् (धातो:) धातु से परे (णमुल्) णमुल् प्रत्यय होता है।
उदा०-(निमूल) निमूलकाषं कषति । वृक्ष आदि को नीचे जड़ छोड़कर काटता है। (समूल) समूलकाषं कषति । वृक्ष आदि को जड़ सहित काटता है।
सिद्धि-(१) निमूलकाषम् । यहां निमूल कर्म उपपद होने पर 'कष हिंसायाम्' (भ्वा०प०) धातु से इस सूत्र से णमुल्' प्रत्यय है। 'अत उपधाया:' (७।२।११६) से कष् धातु को उपधावृद्धि होती है।
(२) समूलकाषम् । पूर्ववत् ।
विशेष-पाणिनीय धातुपाठ में 'कष' धातु हिंसार्थक पठित है किन्तु अनेकार्था हि धातवो भवन्ति' (महाभाष्य) के प्रमाण से यहां कष' धातु छेदनार्थक है।
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