SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 495
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पाणिनीय-अष्टाध्यायी प्रवचनम् उदा० - गोष्पदपूरं वृष्टो देवः । गोष्पदप्रं वृष्टो देवः । सीतापूर वृष्टो देवः । सीताप्रं वृष्टो देवः । आर्यभाषा - अर्थ - (कर्मणि) कर्म कारक उपपद होने पर (पूरे:) पूरि (धातोः) धातु से परे ( णमुल् ) णमुल् प्रत्यय होता है (च) और (अस्य) इस धातु के (ऊलोपः) ऊकार का लोप (अन्यतरस्याम्) विकल्प से होता है (वर्षाप्रमाणे ) यदि वहां वर्षा का प्रमाण प्रतीत हो । ४८२ उदा०- -गोष्पदपूरं वृष्टो देवः । गोष्पदप्रं वृष्टो देवः । पर्जन्य देव ने गौ के पद= चरणचिह्न को भरकर वर्षा की। सीतापूरं वृष्टो देवः, सीताप्रं विष्टो देवः । पर्जन्य देव ने सीता= खूड को भरकर वर्षा की। गौ के चरणचिह्न का भरना तथा खूड का भरना वर्षा का प्रमाण (माप ) है । सिद्धि- (१) गोष्पदपूरम् | यहां गोष्पद कर्म उपपद होने पर पूर्वोक्त 'पूरि' धातु से इस सूत्र से 'णमुल्' प्रत्यय है। (२) गोष्पदप्रम् | यहां विकल्प पक्ष में 'पूरि' धातु के ऊकार का लोप होगया है । शेष पूर्ववत् । (३) सीतापूरम् / सीताप्रम् । पूर्ववत् । णमुल् (वर्षप्रमाणे) - (७) चेले क्नोपेः ॥ ३३ ॥ प०वि० - चेले ७ ।१ क्नोपे: ५ । १ । अनु० - णमुल् कर्मणि, वर्षप्रमाणे इति चानुवर्तते । 'चेले' इत्यत्रार्थग्रहणं क्रियते । चेलम् = वस्त्रम् । अन्वयः - चेले कर्मणि क्नोपेर्धातोर्णमुल् वर्षप्रमाणे । अर्थः- चेलार्थेषु कर्मसु उपपदेषु क्नोपि धातोः परो णमुल् प्रत्ययो भवति, वर्षप्रमाणे गम्यमाने । उदा०-चेलक्नोपं वृष्टो देवः । वस्त्रक्नोपं वृष्टो देवः । वसनक्नोपं वृष्टो देवः । आर्यभाषा-अर्थ- (चेले) चेल= वस्त्रार्थक शब्द ( कर्मणि) कर्म उपपद होने पर (क्नोपे:) क्नोपि (धातोः) धातु से परे ( णमुल् ) णमुल् प्रत्यय होता है (वर्षप्रमाणे ) यदि वहां वर्षा के प्रमाण (माप) की प्रतीति हो । उदा० - चेलक्नोपं वृष्टो देवः । वस्त्रक्नोपं वृष्टो देवः । वसनक्नोपं वृष्टो देवः । पर्जन्य देव ने वस्त्र गीला करनेवाली वर्षा की। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003297
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy