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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् आर्यभाषा-अर्थ- (साकल्ये) सम्पूर्णता अर्थ से युक्त (कर्माण) कर्म उपपद होने पर (दृशिविदो:) दृश् और विद् (धातो:) धातु से परे (णमुल्) णमुल् प्रत्यय होता है।
उदा०-(दृशि) ब्राह्मणदर्श भोजयति । जिस जिस ब्राह्मण वेदज्ञ विद्वान् को देखता है उस उस को भोजन कराता है। (विद) ब्राह्मणवेदं भोजयति । जिस जिस ब्राह्मण वेदज्ञ विद्वान् को जानता है/प्राप्त करता है/सोचता है उस उस को भोजन कराता है।
सिद्धि-(१) ब्राह्मणदर्शम् । यहां साकल्य अर्थ से विशिष्ट ब्राह्मण' कर्म उपपद होने पर दृशिर प्रेक्षणे' (भ्वा०प०) धातु से इस सूत्र से णमुल्' प्रत्यय है। पुगन्तलघूपधस्य च (७।३।८६) से दृश्' धातु को लघूपध गुण होता है।
(२) ब्राह्मणवेदम् । यहां विद ज्ञाने' (अदा०प०) विद्लु लाभे (रुधा०आ०) 'विद विचारणे' (तु०3०) धातु से पूर्ववत् । णमुल्
(५) यावति विन्दजीवोः ।३०। प०वि०-यावति ७१ विन्द-जीवो: ६।२ (पञ्चम्यर्थे)।
स०-विन्दश्च जीव् च तौ-विन्दजीवौ, तयो:-विन्दजीवो: (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)।
अनु०-णमुल् इत्यनुवर्तते। अन्वय:-यावति विन्दजीविभ्यां धातुभ्यां णमुल् ।
अर्थ:-यावत्-शब्दे उपपदे विन्दजीविभ्यां धातुभ्यां परो णमुल् प्रत्ययो भवति।
उदा०-(विन्द:) यावद्वेदं भुक्ते। (जीव) यावज्जीवम् अधीते।
आर्यभाषा-अर्थ-(यावति) यावत् शब्द उपपद होने पर (विन्दजीवो:) विन्द और जीव् (धातो:) धातु से परे (णमुल्) णमुल् प्रत्यय होता है।
उदा०-(विन्द) यावद्वेदं भुङ्क्ते । जितना मिलता है उतना खाता है। (जीव) यावज्जीवम् अधीते । जब तक जीता है, तब तक पढ़ता है।
सिद्धि-(१) यावद्वेदम् । यहां यावत् शब्द उपपद होने पर विद्लु लाभे (रुधा०आ०) धातु से इस सूत्र से णमुल्' प्रत्यय है। 'पुगन्तलघूपधस्य च' (७।३।८६) से 'विद्' धातु को लघूपध गुण होता है।
(२) यावज्जीवम् । जीव प्राणरक्षणे (भ्वा०प०) पूर्ववत् ।
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