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________________ ४७३ तृतीयाध्यायस्य चतुर्थः पादः अन्वय:-समानकर्तृकयो: पूर्वकाले अभीक्ष्ण्ये च धातो: णमुल क्त्वा च। अर्थ:-समानकर्तृकयोर्धात्वर्थयोस्तत्र पूर्वकाले धात्वर्थे आभीक्ष्ण्ये चार्थे वर्तमानाद् धातो: परो णमुल् क्त्वा च प्रत्ययो भवति। द्विर्वचनसहितौ क्त्वाणमुलावाभीक्ष्ण्यं द्योतयत:, न केवलौ। उदा०- (णमुल्) भोजं भोजं व्रजति देवदत्तः। पायं पायं व्रजति यज्ञदत्तः । (क्त्वा) भुक्त्वा भुक्त्वा व्रजति देवदत्त: । पीत्वा पीत्वा व्रजति यज्ञदत्तः। आर्यभाषा-अर्थ- (समानकर्तृकयोः) समान कर्तावाले दो धातु अर्थों में से (पूर्वकाले) पूर्वकालविषयक धात्वर्थ में तथा (आभीक्ष्ण्ये) क्रिया के पुन: पुन: होने अर्थ में (धातो:) धातु से परे (णमुल्) णमुल् (च) और (क्त्वा) क्त्वा प्रत्यय होता है। द्विवचन सहित क्त्वा और णमुल् प्रत्यय आभीक्ष्ण्य अर्थ को प्रकाशित करते हैं, केवल नहीं। उदा०-(णमुल्) भोजं भोजं व्रजति देवदत्तः । देवदत्त पुन: पुन: खाकर जाता है। पायं पायं व्रजति यज्ञदत्तः । यज्ञदत्त पुन: पुन: पीकर जाता है। (क्त्वा) भुक्त्वा भुक्त्वा व्रजति देवदत्तः । पीत्वा पीत्वा व्रजति यज्ञदत्तः । अर्थ पूर्ववत् है। सिद्धि-(१) भोजम् । भुज्+णमुल्। भोज्+अम्। भोजम्+सु । भोजम्। यहां 'भुज्' धातु से इस सूत्र से आभीक्ष्ण्य विशिष्ट अर्थ में णमुल् प्रत्यय है। पुगन्तलघूपधस्य च' (७।३।८६) से 'भुज्' धातु को लघूपध गुण होता है। 'आभीक्ष्ण्ये द्वे भवत:' इस वार्तिक वचन से द्वित्व होता है-भोजं भोजम् । (२) पायम् । पा+णमुल् । पा+युक् ।+अम्। पा+य्+-अम्। पायम्+सु। पायम्। यहां पा पाने' (भ्वा०प०) धातु से इस सूत्र से पूर्ववत् णमुल् प्रत्यय है। 'आतो युक् चिण्कृतो:' (७।३।३३) से 'पा' धातु को 'युक्’ आगम होता है। शेष पूर्ववत् है। (३) भुक्त्वा । 'भुज्' धातु से पूर्ववत् (३।४।२१)। (४) पीत्वा । 'पा' धातु से पूर्ववत् (३।४।२१)। विशेष- 'भोजम्' आदि शब्दों की कृन्मेजन्तः' (१।१।३८) से अव्ययसंज्ञा है और पूर्ववत् सुप्' का लुक् होता है। क्त्वा-णमुल्-प्रतिषेधः (६) न यद्यनाकाक्षे ।२३। प०वि०-न अव्ययपदम्, यदि ७।१ अनाकाक्षे ७१। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003297
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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