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________________ ४७१ तृतीयाध्यायस्य चतुर्थः पादः ४७१ क्त्वा (परावरयोगे) (३) परावरयोगे च।२०। प०वि०-परावरयोगे ७१ च अव्ययपदम्। स०-परश्च अवरश्च तौ-परावरौ, ताभ्याम्-परावराभ्याम्, परावराभ्यां योग इति परावरयोगः, तस्मिन्-परावरयोगे (इतरेतरयोगद्वन्द्वगर्भिततृतीयातत्पुरुषः)। अनु०-क्त्वा इत्यनुवर्तते। अन्वय:-परावरयोगे च धातो: क्त्वा । अर्थ:-परेणाऽवरस्य, अवरेण च परस्य योगेऽपि धातो: पर: क्त्वा प्रत्ययो भवति। उदा०-(परस्यावरेण योग:) अप्राप्य नदी पर्वत: स्थित: । परया नद्या सहावरस्य पर्वतस्य योगोऽस्ति । (अवरस्य परेण योग:) अनतिक्रम्य तु पर्वतं नदी स्थिता। अवरय, नद्या सह परस्य पर्वतस्य योगोऽस्ति। आर्यभाषा-अर्थ-(परावरयोगे) पर के साथ अवर का और अवर के साथ पर का योग होने पर (च) भी (धातो:) धातु से परे (क्त्वा) क्त्वा प्रत्यय होता है। उदा०-(पर का अवर के साथ योग) अप्राप्य नदी पर्वत: स्थितः । परवर्तिनी नदी के साथ अवरवर्ती पर्वत का योग है। (अवर का पर के साथ योग) अनतिक्रम्य पर्वतं नदी स्थिता । अवरवर्तिनी नदी के साथ परवर्ती पर्वत का योग है। सिद्धि-(१) अप्राप्य । प्र+आप+क्त्वा। प्र+आप+ल्यप् । प्राप्त्य। प्राप्य+सु । प्राप्य । नञ्+प्राप्य अप्राप्य । यहां 'प्र' उपसर्गपूर्वक 'आप्लू व्याप्तौ' (भ्वा०प०) धातु से इस सूत्र से क्त्वा' प्रत्यय है। कुगतिप्रादय:' (२।२।१८) से प्रादिसमास, 'समासेऽनपूर्वे क्त्वो ल्यप् (७।१।३७) से क्त्वा' को 'ल्यप' आदेश है और तत्पश्चात् प्राप्य शब्द के साथ 'नञ्' समास है। (२) अनतिक्रम्य । यहां 'अति' उपसर्गपूर्वक क्रमु पादविक्षेपे' (भ्वा०प०) धातु से इस सूत्र से क्त्वा' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है। क्त्वा (पूर्वकाले) (४) समानकर्तृकयोः पूर्वकाले।२१। प०वि०-समानकर्तृकयो: ७।२ पूर्वकाले ७।१ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003297
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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