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________________ ४७० पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् (२) रुदित्वा । यहां रुदिर् अश्रुविमोचने' (अ०प०) धातु से इस सूत्र से क्त्वा' प्रत्यय और आर्धधातुकस्येड्वलादे:' (७।२।३५) से क्त्वा' प्रत्यय को 'इट्' आगम होता है। विशेष-कृत्वा' आदि शब्दों की क्त्वातोसुन्कसुनः' (१।१।३९) से अव्ययसंज्ञा और पूर्ववत् सुप्’ का लुक् होता है। क्त्वा (व्यतीहारे) (२) उदीचां माङो व्यतीहारे।१६। प०वि०-उदीचाम् ६ १३ माङ: ५।१ व्यतीहारे ७।१। अनु०-क्त्वा इत्यनुवर्तते। अन्वय:-व्यतीहारे माङो धातो: क्त्वा उदीचाम् । अर्थ:-व्यतीहारेऽर्थे वर्तमानाद् माङ्धातो: पर: क्त्वा प्रत्ययो भवति, उदीचामाचार्याणां मतेन । व्यतीहार: विनिमयः। 'माङः' इति मेङ् धातो: कृतात्त्वस्य निर्देशः। उदा०-अपमित्य याचते। अपमित्य हरति । पाणिनिमतेयाचित्वाऽपमयते। हृत्वाऽपमयते। आर्यभाषा-अर्थ-(व्यतीहारे) विनिमय अर्थ में विद्यमान (माङ:) माङ् (धातो:) धातु से परे (क्त्वा) क्त्वा प्रत्यय होता है (उदीचाम्) उत्तरदेशीय आचार्यो के मत में। उदा०-अपमित्य याचते। विनिमय करके मांगता है। अपमित्य हरति । विनिमय करके हरण करता है। पाणिनिमत में-याचित्वाऽपमयते। मांग कर विनिमय करता है। हृत्वाऽपमयते । अपहरण करके विनिमय करता है। सिद्धि-(१) अपमित्य । यहां 'अप' उपसर्गपूर्वक 'मेङ् प्रतिदाने (भ्वा०आ०) धातु से इस सूत्र से व्यतीहार अर्थ में क्त्वा' प्रत्यय हो। 'आदेच उपदेशेऽशिति' (६।१।४४) से मेङ्' धातु को आत्त्व, कुगतिप्रादयः' (२।२।१८) से प्रादिसमास, 'समासेऽनपूर्वे क्त्वो ल्यप् (७।३।३७) से क्त्वा' को ल्यप्' आदेश और मयतेरिदन्यतरस्याम् (६।४।७०) से 'माङ्' के 'आ' को इत्त्व और 'हस्वस्य पिति कृति तुक्' (६।१।७१) से तुक् आगम होता है। (२) याचित्वा। यहां 'टुयाच याञायाम्' (भ्वा०आ०) धातु से इस सूत्र से 'क्त्वा' प्रत्यय और 'आर्धधातुकस्येड्वलादे:' (७।२।३५) से 'इट' आगम होता है। (३) हृत्वा । हृञ् हरणे' (भ्वा०उ०) पूर्ववत् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003297
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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