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________________ ४४६ तृतीयाध्यायस्य चतुर्थः पादः (२) कृत: कट: श्वो भविता। यहां कृतः' पद में 'कृ' धातु से क्त प्रत्यय निष्ठा' (३।२।१०२) से भूतकाल में है और 'भविता' पद में 'भू' धातु से 'लुट' प्रत्यय, 'अनद्यतने लुट्' (३ ।३।१५) से भविष्यत्काल में है। इस सूत्र से धात्वर्थों का सम्बन्ध होने पर इन भिन्नकाल में विहित प्रत्ययों का साधुत्व है। (३) भावि कृत्यमासीत् । यहां 'भावि' पद में 'भू सत्तायाम्' (भ्वा०प०) धातु से 'भुवश्च' (३।२।१३८) से 'इनि' प्रत्यय है जो 'भविष्यति गम्यादयः' (३।३।३) से भविष्यत्काल में होता है और 'आसीत्' पद में 'अस् भुवि' (अदा०प०) धातु से 'अनद्यतने लङ् (३।२।१११) से लङ्' प्रत्यय भूतकाल में है। इस सूत्र से धात्वर्थों का सम्बन्ध होने पर इन भिन्नकाल में विहित प्रत्ययों का साधुत्व है। (४) गोमानासीत् । यहां 'गोमान्' पद में तदस्यास्मिन्नस्ति मतुप्' (५ ।२।९४) से मतुप्' प्रत्यय वर्तमानकाल में है और 'आसीत्' पद में पूर्ववत् 'लङ्' प्रत्यय भूतकाल में है। इस सूत्र से धात्वर्थों का सम्बन्ध होने पर इन भिन्न काल में विहित प्रत्ययों का साधुत्व है। लोट् (क्रियासमभिहारे)(२) क्रियासमभिहारे लोट् लोटो हिरवौ वा च तध्वमोः।२। प०वि०-क्रिया-समभिहारे ७।१ लोट् ११ लोट: ६।१ हिस्वौ १।२ वा अव्ययपदम्, च अव्ययपदम्, त-ध्वमो: ६।२।। स०-क्रियायाः समभिहार इति क्रियासमभिहारः, तस्मिन्क्रियासमभिहारे (षष्ठीतत्पुरुषः)। समभिहार:=पौन:पुन्यं भृशार्थो वा। हिश्च स्वश्च तौ-हिस्वौ (इतरेतरयोगद्वन्द्वः) । तश्च ध्वम् च तौ-तध्वमौ, तयो:-तध्वमो: (इतरेतरयोगद्वन्द्वः)। अनु०-धातुसम्बन्धे इत्यनुवर्तते। अन्वय:-धातुसम्बन्धे क्रियासमभिहारे धातोर्लोट, लोटो हिस्वौ, तध्वमोश्च वा। अर्थ:-धात्वर्थानां सम्बन्धे सति क्रियासमभिहारेऽर्थे धातो: परो लोट प्रत्ययो भवति, तस्य च लोट: स्थाने हिस्वावादेशौ भवतः, त-ध्वमोश्च स्थाने विकल्पेन भवत: । उदाहरणानि यथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003297
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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