________________
तृतीयाध्यायस्य चतुर्थः पादः
धात्वर्थसम्बन्धप्रत्ययप्रकरणम् धात्वर्थसम्बन्धः
(१) धातुसम्बन्धे प्रत्ययाः।१। प०वि०-धातु-सम्बन्धे ७१ प्रत्यया: १।३।
स०-अत्र धात्वर्थे धातुशब्दो वर्तते। धात्वर्थानां सम्बन्ध इति धातुसम्बन्धः, तस्मिन्-धातुसम्बन्धे (षष्ठीतत्पुरुषः)। धात्वर्थसम्बन्धः= परस्परं विशेष्यविशेषणभावः।।
- अर्थ:-धात्वर्थानां सम्बन्धे सति, अयथाकालोक्ता अपि प्रत्यया: साधवो भवन्ति।
उदा०-अग्निष्टोमयाजी पुत्रोऽस्य जनिता । कृत: कट: श्वो भविता । भावि कृत्यमासीत्।
आर्यभाषा-अर्थ-(धातुसम्बन्धे) धातु के अर्थों का परस्पर सम्बन्ध विशेष्य-विशेषण भाव होने पर (प्रत्ययाः) अयथाकाल में विहित भी प्रत्यय साधु होते हैं।
उदा०-अग्निष्टोमयाजी पुत्रोऽस्य जनिता। इसके यहां अग्निष्टोम यज्ञ करनेवाला पुत्र उत्पन्न होगा। कृत: कट: श्वो भविता। बनाई जानेवाली चटाई कल बनेगी। भावि कृत्यमासीत् । होनेवाला कार्य था। गोमानासीत् । गोमान् था।
सिद्धि-(१) अग्निष्टोमयाजी पुत्रोऽस्य जनिता । यहां 'अग्निष्टोमयाजी' पद में करणे यजः' (३।२।८५) से यज्' धातु से भूतकाल में 'णिनि' प्रत्यय है और जनिता पद में 'जनी' धातु से 'अनद्यतने लुट्' (३।३।१५) से भविष्यत्काल में लुट्' प्रत्यय है। इस सूत्र से यज्' धातु के अर्थ का जनी' धातु के अर्थ के साथ विशेषण-विशेष्यभाव रूप सम्बन्ध होने पर इस सूत्रे से भूतकाल में विहित णिनि' प्रत्यय का भविष्यत्काल में विहित लुट्' प्रत्यय के साथ साधुत्व विधान किया है। यहां सुबन्त पद विशेषण और तिडन्त पद विशेष्य है। सुबन्त पद गौण और तिङन्त पद प्रधान होता है। गौण पद अपने अर्थ को छोड़कर प्रधान पद के मुख्यार्थ के साथ सम्बन्धित हो जाता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org