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________________ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदा००- (क्तिच्) तनुतादिति तन्तिः । जिसे कोई विस्तृत करना चाहता है - रेखा, गौ, डोरी, पंक्ति । सनुतादिति साति: । जिसे कोई देना चाहता है- भेंट, दान, सहाय आदि । भवतादिति भूति: । जिसे कोई रखना चाहता है- अस्तित्व, जन्म, वैभव आदि । (क्त ) देवा एनं देयासुरिति देवदत्तः । देवताओं ने जिसे आशीर्वादपूर्वक प्रदान किया है, वह देवदत्त पुरुषविशेष । ४४६ सिद्धि - (१) तन्तिः । तन्+क्तिच् । तन्+ति । तन्ति+सु । तन्तिः । यहां 'तनु विस्तारे' (तना० उ० ) धातु से इस सूत्र से आशीर्वाद अर्थ में 'क्तिच्' प्रत्यय है। यहां 'अनुदात्तोपदेश०' (६ । ४ । ३७) से अनुनासिक का लोप और 'अनुनासिकस्य क्विझलो: क्ङिति' (६।४।१५) से दीर्घत्व प्राप्त है किन्तु 'न क्तिचि दीर्घश्च' (६ । ४ । ३९ ) से दोनों का प्रतिषेध होता है। (२) साति: । यहां 'षणु दाने' (तना० उ० ) धातु से 'जनसनखनां सञ्झलो:' (६।४।४२) से 'सन्' को आत्त्व होता है। (३) भूति: । 'भू सत्तायाम्' (भ्वा०प० ) । (४) देवदत्तः । देव+दा+क्त । देवं+दद्+त । देव+दत्+त । देवदत्त+सु । देवदत्तः । यहां देव' उपपद 'डुदाञ् दानें' (जु०3०) धातु से इस सूत्र से आशीर्वाद अर्थ में 'क्त' प्रत्यय है। 'दो दद् घो:' (७/४/४६ ) से 'दा' के स्थान में 'दद्' आदेश और 'खरि च' (७/४/५४) से चर्त्व 'द्' को 'त्' आदेश होता है। लुङ् (माङि) – प०वि० - माङि ७ । १ लुङ् १ । १ । अनु० - वर्तमाने इत्यनुवर्तते । अन्वयः-माङि वर्तमाने धातोर्लुङ् । अर्थ:- माङ्शब्दे उपपदे वर्तमाने काले धातोः परो लुङ् प्रत्ययो भवति । (१६) माङि लुङ् । १७५ । उदा०-मा कार्षीद् देवदत्तः । मा हार्षीद् यज्ञदत्तः । आर्यभाषा - अर्थ - (माङि) माङ् शब्द उपपद होने पर (वर्तमाने ) वर्तमानकाल में (धातोः) धातु से (लुङ्) लुङ् प्रत्यय होता है। उदा० मा कार्षीद् देवदत्तः । देवदत्त न करे । मा हार्षीद् यज्ञदत्तः । यज्ञदत्त हरण न करे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003297
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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