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तृतीयाध्यायस्य तृतीयः पादः ब्रह्मदत्तः । ब्रह्मदत्त हजार रुपये का देनदार (ऋणी) है। निष्कंदायी यज्ञदत्तः । यज्ञदत्त एक निष्क का देनदार (ऋणी) है। निष्क=१६ माशे का सोने का सिक्का।
सिद्धि-(१) अवश्यङ्कारी। अवश्यम् -कृ+णिनि। अवश्यम्+का+इन् । अवश्यंकारिन्+सु। अवश्यंकारीन्+० । अवश्यकारी।
अवश्यम् उपपद डुकृञ् करणे' (तना०उ०) धातु से इस सूत्र से अवश्यंभाव कर्ता वाच्य होने पर णिनि' प्रत्यय है। 'अचो णिति' (७।२।११५) से 'कृ' धातु को वृद्धि होती है। सौ च' (६।४।१३) से नकारान्त की उपधा इ' को दीर्घ, हल्ङ्याब्भ्यो०' (६।११६६) से 'सु' का लोप और नलोप: प्रातिपदिकान्तस्य' (८।२/७) से न्' का लोप होता है। यहां मयूरव्यंसकादयश्च' (२।१।७) से कर्मधारय समास है।
(२) शतं दायी। दा+णिनि । दा+युक्+इन् । दा+य्+इन् । दायिन्+सु । दायीन्+० । दायी।
यहां डुदाञ् दाने (जु०उ०) धातु से इस सूत्र से आधमग्रंयुक्त कर्ता वाच्य होने पर णिनि' प्रत्यय है। 'आतो युक् चिण्कृतो:' से 'दा' धातु को 'युक्' आगम होता है। शेष कार्य पूर्ववत् है। यहां 'अकेनोर्भविष्यदाधमर्ययो:' (२ १३ १७०) से षष्ठीविभक्ति का प्रतिषेध होने पर कर्मणि द्वितीया' (२।३।२) से 'शत' कर्म में द्वितीया विभक्ति होती है। ऐसे ही-सहस्रं दायी आदि। कृत्याः (आवश्यके आधमये च)
(१२) कृत्याश्च ।१७१। प०वि०-कृत्या: १।३ च अव्ययपदम्। अनु०-वर्तमाने, आवश्यकाधमर्ययोरिति चानुवर्तते। अन्वय:-आवश्यकाधमर्म्युयोर्वर्तमाने धातो: कृत्याश्च ।
अर्थ:-आवश्यके आधम] चार्थे वर्तमाने काले धातो: परे कृत्यसंज्ञका: प्रत्यया अपि भवन्ति।
उदा०-(आवश्यकम्) भवता खलु अवश्यं कट: करणीय:, कर्तव्यः, कृत्य:, कार्यो वा। (आधमर्ण्यम्) भवता शतं दातव्यम् । भवता सहस्रं देयम् ।
आर्यभाषा-अर्थ-(आवश्यकाधमर्ण्ययोः) आवश्यक और आधमर्ण्य अर्थ में (वर्तमाने) वर्तमानकाल में (धातो:) धातु से परे (कृत्याः) कृत्यसंज्ञक प्रत्यय (च) भी होते हैं।
उदा०-(आवश्यक) भवता खलु अवश्यं कट: करणीयः, कर्तव्यः, कृत्य:, कार्यो वा। आपको चटाई अवश्य बनानी है। (अधमर्ण्यम्) भवता शतं दातव्यम् । आपको सौ रुपये देने हैं। भवता सहस्रं देयम् । आपको हजार रुपये देने हैं।
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