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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् यहां पूर्ववत् कृत्यसंज्ञक तव्य' प्रत्यय है। यहां हो ढः' (८।२।३१) से वह' के ह' को द' आदेश, 'झषस्तथो?ऽध:' (८।२।४०) से तव्य' के त्' को 'ध्' आदेश, 'ष्टुना ष्टुः' (८।४।४०) से 'ध्' को द' आदेश, 'ढो ढे लोप:' (८।३।१३) से पूर्व ढकार का लोप, 'सहिवहोरोदवर्णस्य' (६।३।१११) से 'वह' के अकार को ओकार आदेश होता है।
(३) वाह्या। यहां पूर्वोक्त वह' धातु से ऋहलोर्ण्यत्' (३।१।१२४) से ण्यत्' प्रत्यय है। 'अत उपधाया:' (७।२।११६) से वह' धातु को उपधावृद्धि होती है।
(४) वोढा। यहां पूर्वोक्त 'वह' धातु से ‘ण्वुल्तृचौं' (३।१।१३३) से तृच्' प्रत्यय है। शेष कार्य वोढव्या के समान हैं।
(५) वहेत् । यहां पूर्वोक्त वह' धातु से इस सूत्र से उक्त अर्थ में 'लिङ्' प्रत्यय है। णिनिः (आवश्यके, आधमये च)
(११) आवश्यकाधमर्ययोर्णिनिः।१७०। प०वि०-आवश्यक-आधमर्ण्ययो: ७।२ णिनि: ११ ।
स०-अवश्यं भाव आवश्यकम् 'द्वन्द्वमनोज्ञादिभ्यश्च' (५।१।२३२) इति वुञ् प्रत्यय: । अधममृणं यस्य स:-अधमर्णः, अधमर्णस्य भाव आधमर्ण्यम् । आवश्यकं च आधमयं च ते-आवश्यकाधमर्थे, तयो:-आवश्यकाधमर्ययो: (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)।
अनु०-वर्तमाने इत्यनुवर्तते। अन्वय:-आवश्यकाधमर्म्युयोर्वर्तमाने धातोर्णिनिः।
अर्थ:-आवश्यके आधमर्थे च कर्तरि वाच्ये वर्तमाने काले धातो: परो णिनिः प्रत्ययो भवति।
उदा०-(आवश्यकम्) अवश्यङ्कारी देवदत्त:। (आधमर्ण्यम्) शतंदायी देवदत्तः । सहस्रदायी ब्रह्मदत्त: । निष्कंदायी यज्ञदत्त: ।
__ आर्यभाषा-अर्थ-(आवश्यकाधमर्ययो:) आवश्यंभाव से युक्त और अधमर्णता से युक्त कर्ता वाच्य होने पर (वर्तमाने) वर्तमानकाल में (धातो:) धातु से परे (णिनि:) णिनि प्रत्यय होता है।
उदा०-(आवश्यक) अवश्यङ्कारी देवदत्तः । देवदत्त कार्य को अवश्य करनेवाला है। (आधमW) शतंदायी देवदत्तः । देवदत्त सौ रुपये का देनदार (ऋणी) है। सहस्रदायी
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