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________________ ४४० पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् विशेष-यहां 'अग' शब्द अनुनय-विनय का द्योतक है और स्म' शब्द अधिकार का वाचक है। तुमुन् (कालसमयवेलासु) (८) कालसमयवेलासु तुमुन्।१६७ । प०वि०-काल-समय-वेलासु ७।३ तुमुन् ११ । स०-कालश्च समयश्च वेला च ता:-कालसमयवेलाः, तासुकालसमयवेलासु (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)। अनु०-वर्तमाने इत्यनुवर्तते। अन्वय:-कालसमयवेलासु वर्तमाने धातोस्तुमुन् । अर्थ:-कालसमयवेलासु उपपदेषु वर्तमाने काले धातो: परस्तुमुन् प्रत्ययो भवति। उदा०-(काल:) कालो भोक्तुम्। (समय:) समयो भोक्तुम्। (वला) वेला भोक्तुम् । आर्यभाषा-अर्थ-(कालसमयवेलास) काल, समय, वेला शब्द उपपद होने पर (वर्तमाने) वर्तमानकाल में (धातोः) धातु से परे (तुमुन्) तुमुन् प्रत्यय होता है। । उदा०-(काल) कालो भोक्तुम् । यह भोजन का काल है। (समय:) समयो भोक्तुम् । यह भोजन का समय है। विला) वेला भोक्तुम् । यह भोजन की वेला है। वेला समय। सिद्धि-(१) भोक्तुम् । भुज्+तुमुन् । भुज्+तुम् । भुक्+तुम्। भोक+तुम् । भोक्तुम् । __ यहां पूर्वोक्त 'भुज' धातु से इस सूत्र से काल आदि शब्द उपपद होने पर वर्तमानकाल में तुमुन्' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है। लिङ् (कालसमयवेलासु) (६) लिङ् यदि।१६८। प०वि०-लिङ् १।१ यदि ७।१। अनु०-वर्तमाने, कालसमयवेलासु इति चानुवर्तते। अन्वय:-कालसमयवेलासु यदि वर्तमाने धातोर्लिङ् । अर्थ:-कालसमयवेलासु यत्-सहितेषु उपपदेषु वर्तमाने काले धातो: परो लिङ् प्रत्ययो भवति। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003297
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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