________________
४३६
तृतीयाध्यायस्य तृतीयः पादः आर्यभाषा-अर्थ-(प्रैषातिसर्गप्राप्तकालेषु) प्रेरणा करना, कामचारपूर्वक आज्ञा देना और समय आना अर्थ में (स्मे) स्म शब्द उपपद होने पर (ऊर्ध्वमौहूर्तिके) एक मुहूर्त पश्चात् के (वर्तमाने) वर्तमानकाल में (धातो:) धातु से परे (लोट्) प्रत्यय होता है।
उदा०-प्रेषितः, अतिसृष्टः, प्राप्तकालो वा ऊर्ध्वं मुहूर्ताद् भवान् कटं करोतु स्म, ग्रामं गच्छतु स्म, माणवकमध्यापयतु स्म । प्रेरित, स्वेच्छापूर्वक वा समय आने पर आप एक मुहूर्त के पश्चात् चटाई बनावें, गांव जावें, बालक को पढ़ावें।
सिद्धि-(१) करोतु, (२) गच्छतु, (३) अध्यापयतु की सिद्धियां पूर्ववत् हैं। लोट् (अधीष्टे)
(७) अधीष्टे च।१६६ । प०वि०-अधीष्टे ७११ च अव्ययपदम् । अनु०-स्मे लोट् इति चानुवर्तते।
अर्थ:-स्म-शब्दे उपपदे धातो: परो लोट् प्रत्ययो भवति, अधीष्टे गम्यमाने।
उदा०-अङ्ग स्म आचार्य ! माणवकमध्यापय । अङ्ग स्म राजन् ! अग्निहोत्रं जुहुधि।
आर्यभाषा-अर्थ-(स्मे) स्म शब्द उपपद होने पर (धातो:) धातु से परे (लोट) लोट् प्रत्यय होता है (अधीष्टे) यदि वहां सत्कारपूर्वक व्यवहार करना अर्थ प्रकट हो।.
उदा०-अङ्ग स्म आचार्य ! माणवकमध्यापय । हे आचार्यप्रवर ! आपसे अनुनय है कि आप मेरे बालक को पढ़ावें। अङ्ग स्म राजन् ! अग्निहोत्रं जुहुधि । हे राजन् ! आपसे विनय है कि आप अग्निहोत्र का अनुष्ठान करें।
सिद्धि-(१) अध्यापय । अध्यापि+लोट् । अध्यापि+सिप्। अध्यापि+शप्+सि। अध्यापि+अ+ति। अध्यापे+अ+० । अध्यापय ।
यहां णिजन्त 'इङ् अध्ययने (अदा०आ०) धातु से इस सूत्र से स्म शब्द उपपद होने पर सत्कारपूर्ण व्यवहार की अभिव्यक्ति में 'लोट्' प्रत्यय है। यहां 'सिप' प्रत्यय के स्थान में सेपिच्च' ३।४।८७) से 'हि' आदेश और 'अतो हे:' (६।४।१०५) से 'हि' का लुक् होता है।
(२) जुहुधि । हु+लोट् । हु+सिप् । हु+हु+शप्+सि । झु+हु+अ+सि। जु+हु+o+हि। जु+हु+धि। जुहुधि।
यहां 'हु दानादनयोः, आदाने चेत्येके' (जु०प०) धातु से इस सूत्र से पूर्ववत् 'लोट्' प्रत्यय है। सिप्' प्रत्यय के स्थान में पूर्ववत् हि' आदेश और हुझलभ्यो हेर्धि:' (६।४।१०१) से 'हि' के स्थान में 'धि' आदेश होता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org