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________________ ४३४ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् भुजीत। इह भवान् आसीत। (३) आमन्त्रणम्=कामचारकरणम् । इह भवान् भुञ्जीत। इह भवान् आसीत। (४) अधीष्टम्=सत्कारपूर्वको व्यवहारः। अधीच्छामो भवन्तम्-माणवकं भवान् उपनयेत्। (५) सम्प्रश्न:=सम्प्रधारणम् (कर्तव्यविचारणा) किं नु खलु भो अहं. व्याकरणमधीयीय । (६) प्रार्थनम् याच्ञा। भवति मे प्रार्थनाऽहं व्याकरणमधीयीय। आर्यभाषा-अर्थ-(विधि०प्रार्थनषु) विधि, निमन्त्रण, आमन्त्रण, अधीष्ट, सम्प्रश्न, प्रार्थन अर्थों में (धातो:) धातु से परे (वर्तमाने) वर्तमानकाल में (लिङ्) लिङ् प्रत्यय होता है। उदा०-(१) विधि-आज्ञा देना। कटं कुर्याद् देवदत्तः । देवदत्त चटाई बनाये। ग्राम भवानागच्छेत् । आप गांव आओ। (२) निमन्त्रण=अवश्य निमन्त्रित करना। इह भवान् भुञ्जीत । आप यहां अवश्य भोजन करें। इह भवान् आसीत । आप यहां अवश्य ठहरें। (३) आमन्त्रणम्-इच्छापूर्वक आमन्त्रित करना। इह भवान् भुजीत। यदि आप चाहें तो यहां भोजन करें। इह भवान् आसीत । यदि आप चाहें तो यहां ठहरें। (४) अधीष्ट-गुरुजन आदि के प्रति सत्कारपूर्वक व्यवहार । अधीच्छामो भवन्तम्-माणवकं भवान् उपनयेत् । हम चाहते हैं कि आप हमारे बालक का उपनयन-संस्कार करायें। (५) सम्प्रश्न-कर्तव्य का विचार करना। किं नु खलु भो अहं व्याकरणमधीयीय । भाई ! क्या मैं व्याकरणशास्त्र का अध्ययन करूं? (६) प्रार्थन-मांग। भवति में प्रार्थनाऽहं व्याकरणमधीयीय । मेरी यह मांग है कि मैं व्याकरणशास्त्र का अध्ययन करूं। सिद्धि-(१) कुर्यात् । यहां 'डुकृञ् करणे (तनाउ०) धातु से इस सूत्र से विधि अर्थ में वर्तमानकाल में लिङ्' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है। (२) आगच्छेत् । यहां आङ्' उपसर्गपूर्वक 'गम्लु गतौ' (भ्वा०प०) धातु से इस सूत्र से विधि अर्थ में लिङ्' प्रत्यय है। 'इषुगमियमां छः' (७।३।७७) से 'गम्' के 'म्' को छु' आदेश होता है। (३) भुञ्जीत । पूर्ववत् । (४) आसीत । 'आस उपवेशने (अदा०आ०) शेष कार्य 'भुञ्जीत' के समान है। (५) उपनयेत् । यहां उप' उपसर्गपूर्वक ‘णी प्रापणे' (भ्वा०उ०) धातु से इस सूत्र से अधीष्ट अर्थ में 'लिड्' प्रत्यय है। (६) अधीयीय । यहां 'अधि' उपसर्गपूर्वक 'इङ् अध्ययने (अदा०आ०) धातु से इस सूत्र से सम्प्रश्न/प्रार्थन अर्थ में लिङ्' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003297
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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