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________________ ३१ तृतीयाध्यायस्य प्रथमः पादः सिद्धि-(१) जोषिषत् । जुष्+लेट् । जुष्+सिप्+ल। जुष्+इट्+स्+अट्+तिप् । जुष्+इ+स्+अ+त् । जोष्+इ+ष+अ+त् । जोषिषत् । यहां 'जुषी प्रीतिसेवनयोः' (तु०आ०) धातु से लिर्थे लेट्' (३।४।७) से लेट्' प्रत्यय है। इस सूत्र से सिप्' प्रत्यय होता है। लेटोऽडाटौं' (३।४।९४) से लेट्' को 'अट्' आगम होता है। इतश्च लोप: परस्मैपदेषु' (३।४।७९) से 'तिम्' के इकार का लोप होता है। 'आर्धधातुकस्येड्वलादेः' (८।३।५९) से 'इट्' आगम है। पुगन्तलघूपधस्य च (७।३।८६) से जुष् की उपधा को गुण होता है। 'आदेशप्रत्यययोः' (८।३।५९) से षत्व होता है। (२) तारिषत् । त प्लवनसन्तरणयोः' (भ्वा०प०) 'सिब बहुलं णिद् वक्तव्यः' (वा० ३।१।३४) से सिप्' प्रत्यय को णित् मानकर 'अचो णिति' (७।२।११५) से तृ धातु को वृद्धि होती है। (३) मन्दिषत् । 'मदि स्तुतिमोदमदस्वप्नकान्तिगतिषु' (भ्वा०आ०) 'इदितो नुम् धातो:' (७।१।५८) से नुम् आगम होता है। (४) पताति। पत्+लेट् । पत्+आट्+त् । पत्+आ+तिप् । पत्+आ+ति। पताति। यहां पत्लु गतौ' (भ्वा०प०) धातु से पूर्ववत् लट्' प्रत्यय है। यहां बहुल-वचन से इस सूत्र से 'सिप' प्रत्यय नहीं होता है। लेटोऽडाटौ' (३।४।९४) से 'लेट्' को 'आट्' आगम होता है। विशेष-लेट्लकार का प्रयोग सब कालों में वैदिकभाषा में होता है, लौकिक संस्कृतभाषा में नहीं। लिट्लकारः आम् (१) कास्प्रत्ययादाममन्त्रे लिटि।३५। प०वि०-कास्-प्रत्ययात् ५।१ आम् १ ।१ अमन्त्रे ७।१ लिटि ७१। स०-कास् च प्रत्ययश्च एतयो: समाहार: कास्प्रत्ययम्, तस्मात्-कास्प्रत्ययात् (समाहारद्वन्द्व:)। न मन्त्र इति अमन्त्रः, तस्मिन्-अमन्त्रे (नञ्तत्पुरुष:)। अनु०-धातोरित्यनुवर्तते। अन्वय:-अमन्त्रे कास्प्रत्ययाद् धातोराम् लिटि। अर्थ:-अमन्त्रे विषये कास: प्रत्ययान्ताच्च धातो: पर आम् प्रत्ययो भवति, लिटि प्रत्यये परतः । Jain Education International -For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003297
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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