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तृतीयाध्यायस्य तृतीयः पादः
४१५ आर्यभाषा-अर्थ-(कथमि) कथम् शब्द उपपद होने पर (धातो:) धातु से परे (विभाषा) विकल्प से (लिङ्) लिङ् (च) और (लट्) लट् प्रत्यय होता है (गर्हायाम्) यदि वहां निन्दा अर्थ की प्रतीति हो।।
यहां अपने-अपने विषय में विहित प्रत्ययों के अबाधन के लिये 'विभाषा' ग्रहण किया गया है। इससे यथाप्राप्त प्रत्यय भी होते हैं।
उदा०-(लिङ्) कथं नाम तत्रभवान् शूद्रं न याजयेत् । (लट्) कथं नाम तत्रभवान् शूद्रं न याजयति । कैसे आपने शूद्र को यज्ञ नहीं कराया, कराते हैं, करायेंगे। यथाप्राप्त-(लुट्) कथं नाम तत्रभवान् शूद्रं न याजयिष्यति। कैसे आप शूद्र को यज्ञ नहीं करायेंगे। (लुट) कथं नाम तत्रभवान् शूद्रं न याजयिता। अर्थ पूर्ववत् है। (लङ्) कथं नाम तत्रभवान् शूद्रं नायीयजत् । कैसे आपने शूद्र को यज्ञ नहीं कराया। (लङ्) कथं नाम तत्रभवान् शूद्रं नायाजयत् । अर्थ पूर्ववत् है। (लिट्) कथं नाम तत्रभवान् शूद्रं न याजयाञ्चकार । अर्थ पूर्ववत् है।
यहां लिनिमित्त भी है अत: भूतकाल में क्रिया की असिद्धि होने पर विकल्प से लुङ् प्रत्यय होता है। कथं नाम तत्रभवान् शूद्रं नायाजयिष्यत, न याजयेद् वा। कैसे आपने शूद्र को यज्ञ नहीं कराया ? भविष्यत्काल में तो नित्य लङ् ही होता है-कथं नाम तत्रभवान् शूद्रं नायाजयिष्यत् । कैसे आप शूद्र को यज्ञ नहीं करायेंगे ?
सिद्धि-(१) याजयेत् । यहां णिजन्त यज देवपूजासंगतिकरणदानेषु' (भ्वा० उ०) धातु से कथम् शब्द उपपद होने पर गर्हा अर्थ में लिङ्' प्रत्यय है।
(२) याजयति । पूर्वोक्त यज्' धातु से पूर्ववत् ‘लट्' प्रत्यय है।
(३) याजयिष्यति। पूर्वोक्त 'यज्' धातु से विकल्प पक्ष में लृट् शेषे च (३।३।१३) से 'लुट' प्रत्यय है।
(४) याजयिता। पूर्वोक्त यज्' धातु से विकल्प पक्ष में 'अनद्यतने लुट्' (३।३।१५) से लुट्' प्रत्यय है।
(५) अपीयजत् । पूर्वोक्त यज्' धातु से विकल्प पक्ष में 'लुङ्' (३।२।११०) से लुङ्' प्रत्यय है।
(६) अयाजयत् । पूर्वोक्त यज्' धातु से 'अनद्यतने लङ्' (३।२।१११) से 'लङ्' प्रत्यय है।
(७) याजयाञ्चकार । पूर्वोक्त यज्' धातु से 'परोक्षे लिट्' (३।२।११५) से लिट्' प्रत्यय है।
(८) अयाजयिष्यत् । पूर्वोक्त यज्' धातु से 'लिङ्' के निमित्त में क्रियातिपत्ति होने पर लिनिमित्ते लुङ् क्रियातिपत्तौः' (३।३।१३९) से वोताप्यो:' (३।३।१४१) के अधिकार में भूतकाल में लङ्' प्रत्यय है।
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